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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लॉर्ड मिलनरने श्वेत-संघको जो उत्तर दिया उसमें एक बात संकट-सूचक है। लॉर्ड महोदय भारत सरकारसे इस शर्तपर गिरमिटिया मजदूरोंको लेनेके लिए लिखा-पढ़ी कर रहे हैं कि उन्हें जबरन वापस भेजा जा सके। प्रसन्नताको बात है कि भारत सरकारने परम-श्रेष्ठको अबतक उनके सन्तोषके लायक कोई उत्तर दिया है, ऐसा नहीं दीखता । किन्तु लिखा-पढ़ी अभी जारी है, यह देखते हुए आज निम्न तार भेजा गया है :

लॉर्ड मिलनरने श्वेत-संघ (व्हाइट लीग)को उत्तर देते हुए बताया है कि उन्होंने भारत सरकारसे गिरमिटिया भारतीय भेजनेको कहा है, जो गिरमिट पूरा होनेपर लौट जायें। आशा है अनिवार्य वापसीका प्रस्ताव मंजूर न होगा ।

इस प्रस्तावका अर्थ समस्त ब्रिटिश नीतिको उलट देनेसे कम और कुछ नहीं है। भारतीयोंकी माँग उन लोगोंके लाभके लिए है जो गुलामोंके रूपमें उनका श्रम चाहते हैं । ज्यों ही उनके बन्धन ढीले होंगे त्यों ही उनको वापस जाना होगा। दूसरे शब्दोंमें, उपनिवेश, यदि ले सके तो, भारतीयोंसे सब कुछ ले लेगा, किन्तु बदलेमें देगा कुछ भी नहीं; क्योंकि उनको जो मजदूरी दी जायेगी वह सदा प्रमाणित मजदूरीसे कम होगी, और भले ही वह कितनी ही ऊँची क्यों न हो, इतनी ऊँची नहीं हो सकती कि उससे उनकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और उस देशमें बसनेके अधिकारसे वंचित होनेकी क्षतिपूर्ति हो सके । अतः जबतक ट्रान्सवाल अपनी स्वतन्त्र भारतीय आबादीके साथ उचित तरीकेसे व्यवहार करनेके लिए तैयार नहीं है, तबतक वह भारतसे कोई सहायता पानेकी आशा नहीं कर सकता। इसके अतिरिक्त, शुद्ध भावसे आशा की जाती है कि अपने एकपक्षीय लाभके लिए उसे भारतीय मजदूरोंका शोषण न करने दिया जायेगा ।

ईस्ट लंदनके लोग अपने छुटकारेके लिए गला फाड़ कर चिल्ला रहे हैं। यह सच है कि वह नगर एक स्वशासित उपनिवेशका अंग है। किन्तु वे श्री चेम्बरलेनसे अपील करते हैं कि वे ईस्ट लंदनकी नगरपालिकासे वैसी ही मित्रवत् प्रार्थना करनेमें अपने महत्प्रभावका उपयोग करें, जैसी उन्होंने भूतपूर्व दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यसे की थी । ईस्ट लंदन तो आखिर साम्राज्यका एक अंग है, जब कि दक्षिण आफ्रिकी गणराज्य साम्राज्यका अंग नहीं था।

नेटाल

लॉर्ड मिलनरकी बाजार-सम्बन्धी सूचनाका समस्त दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंपर अत्यन्त हानिकर परिणाम हुआ है । जहाँतक ट्रान्सवालका सम्बन्ध है, यह सूचना अब अस्थायी मान ली गई है। किन्तु डर्बन नगर-परिषदने इसे गम्भीर रूपसे दिलमें बसा लिया है; और वह नेटालकी संसद्से अनुरोध कर रही है कि वह नया कानून पास करे, जिसमें बाजारों, अर्थात् पृथक् बस्तियों आदिके सिद्धान्तका समावेश हो जाये। इससे प्रकट होता है कि किसी एक बड़े आदमीका एक ही गलत कदम कितनी बुराई कर सकता है। वह सूचना एक गलत कदम थी, इस सम्बन्धमें शायद ही कोई विवाद हो । क्योंकि, जब वह तैयार की गई तब उसे स्थायी माना गया था। अब लॉर्ड मिलनरने कहा है कि वह केवल प्रयोगात्मक है। जाहिर है कि, नेटाल और केप दोनोंने उसे स्थायी माना है । इस सम्बन्धमें भारतके महा-अंक-निर्देशकका कथन पढ़ने योग्य है । उसकी एक कतरन संलग्न है ।

[अंग्रेजीसे ]

इंडिया ऑफ़िस: ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्डस, ४०२ ।