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२४८. प्रार्थनापत्र : ट्रान्सवालके गवर्नरको

ब्रिटिश भारतीय संघ

२५ व २६, कोर्ट चेम्बर्स
रिसिक स्ट्रीट
जोहानिसबर्ग
जून ८, १९०३

सेवामें

निजी सचिव
परमश्रेष्ठ गवर्नर, ट्रान्सवाल
जोहानिसबर्ग

महोदय,

ब्रिटिश भारतीय संघ (ब्रिटिश इंडियन असोसिएशन) उन अनेकानेक मुद्दोंके सम्बन्धमें परमश्रेष्ठकी सेवामें उपस्थित होनेकी धृष्टता कर रहा है, जो उस शिष्ट-मण्डलने परमश्रेष्ठके सामने पेश किये थे, जिसे गत २२ मईको परमश्रेष्ठने भेंट देनेकी कृपा की थी ।

संघकी कार्य समिति अनुभव करती है कि पिछली मुलाकातका समय सीमित था, इसलिए इतने थोड़े समयमें शिष्ट-मण्डल अपने कुछ मुद्दोंको पूरी तरह परमश्रेष्ठकी सेवामें नहीं रख सका। इसी प्रकार, परमश्रेष्ठने जो भाषण दिया उसके जवाबमें भी कुछ कहने का अवसर शिष्ट-मण्डलको नहीं मिल सका ।

इन मुद्दोंकी चर्चा शुरू करनेसे पहले पिछली मुलाकातके समय परमश्रेष्ठने समितिकी बातें देरतक जिस धीरज और सौजन्यके साथ सुनीं, और जिस सहानुभूतिके साथ उनका जवाब दिया, उस सबके लिए समिति परमश्रेष्ठको आदरपूर्वक धन्यवाद देना चाहती है ।

१. एशियाई दफ्तर

परमश्रेष्ठके प्रति अधिकतम आदर रखते हुए समितिकी अब भी यही राय है कि जिस तरह एशियाई दफ्तर अभी काम कर रहा है वह भारतीय समाजके लिए एक भारी बोझ और उपनिवेशकी आयपर एक अनावश्यक खर्च है । समितिने केवल उसकी कार्य-पद्धतिके बारेमें अपनी राय बताई है। इसमें पर्यवेक्षकोंमें से किसीके व्यक्तित्वपर किसी भी प्रकारका आक्षेप करनेका हेतु समितिका नहीं है।

(क) अनुमति-पत्रों ( परमिट्स )के विषयमें एशियाई दफ्तरने बड़ी कठिनाइयाँ उपस्थित की हैं |

परमश्रेष्ठने कहा था कि किसी समय भारतीयोंको बहुत अधिक अनुमति पत्र दिये जाते रहे हैं । परन्तु मेरी समिति बताना चाहती है कि इक्के-दुक्के अपवादोंको छोड़कर गैर-शरणार्थियोंको कभी अनुमति पत्र नहीं दिये गये हैं । शान्ति-रक्षा अध्यादेश (पीस प्रिजर्वेशन ऑर्डिनेन्स )के मंजूर हो जानेके बादकी अवधिमें कुछ दिनों रेलवे अधिकारियोंका खयाल रहा कि अनुमति पत्रका होना अनिवार्य नहीं है और इसलिए अनुमति-पत्र देखे बगैर ही वे रेल-टिकट जारी करते रहे।