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प्रार्थनापत्र: ट्रान्सवाल्के गवर्नरको

बदलेमें अनुमति-पत्र (परमिट) लिये जायें। यद्यपि यह अनुमति-पत्र देनेके पीछ उद्देश्य तो अच्छा था, परन्तु इसको जिस प्रकार कार्यान्वित किया गया है, उसमें जोहानिसबर्ग, पाँचेफ़स्ट्रम और हाइडेलबर्गके हजारों भारतीयोंको बड़े क्रूर अत्याचार सहने पड़े। मेरी समिति उनका वर्णन नहीं करना चाहती, क्योंकि उपनिवेश सचिव उस प्रश्नपर विचार कर रहे हैं। हमारा मतलब तो केवल यह बताना है कि एशियाई दफ्तरके खुलनेके कारण ही यह सब हो रहा है । नहीं तो इतने कष्ट असम्भव थे ।

और अब इस दफ्तरके होते हुए भी शासनने यह निश्चय किया है कि इस दफ्तरके अलावा, उससे अलग एक और स्वतंत्र एशियाई अफसर नियुक्त किया जाये। इस नये निश्चयका कारण मेरी समितिकी समझमें नहीं आ रहा है।

पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन)-करका समर्थन करते हुए परमश्रेष्ठने कहा था कि वह कर उपयोगी है । मेरी समितिने परमश्रेष्ठकी सलाहको मान लिया है और वह इस प्रश्नपर पुनः चर्चा करना नहीं चाहती, सिवा इसके कि इस सिलसिलेमें वह प्रस्तुत विषयपर कुछ अधिक प्रकाश डाल दे । बात यह है कि, वास्तवमें, जैसा कहा जा चुका है, एक बार तो पंजीकरण एशियाई दफ्तर द्वारा हुआ, दूसरी बार हुआ अनुमति-पत्रोंके मुहकमेके मुख्य सचिव द्वारा । अब यह तीसरी बार पंजीकरण करनेका उपक्रम है । मेरी समितिकी नम्र राय है कि सन् १८८५ के कानून नं० ३ को कार्यान्वित करनेमें इस तरह तीन-तीन बार पंजीकरण कराने की जरूरत नहीं है। इसके बगैर भी तीन पौंडका कर उन लोगोंसे वसूल किया जा सकता था, जिन्होंने पहली हुकूमतको वह नहीं दिया था । किन्तु इसके लिए एक स्वतंत्र दफ्तरके मारफत एक लम्बी-चौड़ी व्यवस्था कायमकी गई है । मेरी समितिकी रायमें इसकी कोई जरूरत नहीं थी।

(ग) एशियाई दफ्तरने परवाना देनेवाले दफ्तरके काममें अनावश्यक दस्तंदाजी की है ।

कोई भी भारतीय व्यापारी या फेरीवाला एशियाई दफ्तरकी सिफारिशके बगैर अपना परवाना प्राप्त नहीं कर सकता । यद्यपि कानूनमें इसका कहीं उल्लेख नहीं है, जान पड़ता है कि राजस्व-विभागके अधिकारियोंको विभागले हिदायतें दी गई हैं कि बगैर ऐसी सिफारिशके किसीको भी परवाने न दिये जायें। मेरी समितिकी समझमें नहीं आता कि इन सिफारिशोंकी क्या जरूरत है ? परवाना (लाइसेंस) लेनेके लिए अर्जदारको हर हालतमें अपना अनुमति पत्र पेश करना पड़ता है और प्रचलित घोषणा-पत्र भी भरना पड़ता है। अगर उद्देश्य यह निश्चय करना हो कि अनुमति-पत्र और घोषणा-पत्र अर्जदारका ही है तो एशियाई दफ्तर इस कामको राजस्व-अधिकारियोंकी अपेक्षा अधिक अच्छी तरह किसी भी सूरतमें नहीं कर सकता। ऐसे मामलोंमें स्वाभाविक रूपसे धोखेकी कहीं गुंजाइश नहीं है ।

(च) फोटोवाले पासोंकी पद्धतिके लिए भी एशियाइ दफ्तर ही जिम्मेदार है ।

इतनेपर भी एशियाई दफ्तरको भारतीयोंपर अपनी सत्ता अधूरी लगी। मानो इसीलिए उसने हालमें आगन्तुक पासोंकी एक नई पद्धति शुरू की। कानूनमें इसका कोई आधार नहीं है। इससे भारतीयोंकी हलचलोंपर एक नया प्रतिबन्ध लग गया ।

इन सबके बाद एशियाई दफ्तरके कर्तव्यकी इतिश्री हो जाती है।

(ङ) एशियाई दफ्तर राज्यके कोशपर एक अनावश्यक बोझ है ।

पिछले विवरणसे यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि यह दफ्तर सार्वजनिक धनका निरा अपव्यय है । क्योंकि, अगर समुद्र किनारेके शहरोंके अफसर बगैर एशियाई दफ्तरकी सिफारिशके,