उपसंहार
दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए भारतीयोंका हित परमश्रेष्ठके हाथोंमें है। बाजारवाली सूचनाका व्यापक असर तो दक्षिण आफ्रिकाके दूसरे भागोंमें हो ही रहा है। इसपर अगर इस उपनिवेशमें भारतीयोंके अधिकार कम किये गये या रंगभेदके आधारपर कोई कानून बनाया गया -- वह भी परमश्रेष्ठके हाथों, जो यहाँ उच्चायुक्त और गवर्नर इन दोनों पदोंको सुशोभित कर रहे हैं। और दक्षिण आफ्रिकाके निवासियोंके हृदयमें बड़ा भारी स्थान रखते हैं -- तो नेटाल और शुभाशा अन्तरीप (केप ऑफ़ गुड होप)के स्वराज्य-प्राप्त उपनिवेश अपने यहाँ ऐसे कानूनोंका अनुकरण करनेमें जरा भी ढिलाई नहीं करेंगे। संघकी नम्र सम्मतिमें गोरोंने इस प्रदेशको जीता है, यह केवल अंशतः सच है । उस लड़ाईमें ऐन संकटके समय भारतसे फौजोंका मददके लिए पहुँच जाना कम महत्त्वकी बात नहीं है । इस फौजमें केवल गोरे ही नहीं थे । इसके सिवा साथमें डोली उठानेवाले तथा दूसरे भी बहुत-से थे, जो उतने ही उपयोगी थे; और उन्होंने भी सिपाहियोंकी भाँति ही लड़ाईके संकटोंका सामना किया था। इसके अतिरिक्त स्थानीय भारतीय भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी अपना कर्तव्य किया था । संसारके अनेक भागोंमें भारतीय सिपाही साम्राज्यकी लड़ाइयोंमें लड़ ही रहे हैं।
भारतीयोंको ठेठ बचपनसे यह सिखाया जाता रहा है कि कानूनको निगाहमें सब ब्रिटिश प्रजाजन समान हैं । भारतकी जनताको स्वतन्त्रताका परवाना बहुत भारी खून-खराबीके बाद सन् १८५७[१]में मिला, जिसमें यह स्पष्ट रूपसे स्वीकार किया गया है कि यद्यपि भारतकी राजनिष्ठाको बड़ी कठिन परीक्षामें से गुजरना पड़ा किन्तु अन्तमें उसके कारण भारत साम्राज्यमें रह गया ।
ब्रिटिश भारतीय बहुत छोटी चीज चाहते हैं। वे कोई राजनीतिक सत्ता नहीं माँगते । वे स्वीकार करते हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश जातिका वर्चस्व रहे । सिद्धान्ततः उन्हें मंजूर है कि यहाँपर जहाँ-कहींसे भी सस्ते मजदूर लाये जायें, उनकी संख्या सीमित हो । वे सिर्फ इतनी बातें चाहते हैं कि जो लोग यहाँ पहलेसे ही आकर बस गये हैं या जो बादमें इस उपनिवेशमें व्यापारके लिए आयें, उनको जाने-आनेकी आजादी हो और मामूली कानूनी जरूरतोंके सिवा जमीन-जायदाद खरीदनेपर कोई रोक न हो। वे यह भी चाहते हैं कि रंगीन चमड़ी होनेके कारण उनपर जो कानूनी बन्दिशें लगा दी गई हैं वे हटा दी जायें। यह सच है कि इस उपनिवेशके गोरे निवासी अथवा उनमेंसे कुछ जरूर चाहते हैं कि भारतीयोंके विरुद्ध कड़े कानून बनाये जायें। वे शक्तिशाली हैं । भारतीय कमजोर हैं । परन्तु ब्रिटिश सरकार कमजोरोंकी रक्षाके लिए विख्यात रही है । अतः हमारे संघकी परमश्रेष्ठसे यही विनती है वे हमारे समाजको वह संरक्षण प्रदान करें और उसकी प्रार्थना स्वीकार करें।
आपका विनम्र सेवक,
अब्दुल गनी
अध्यक्ष, ब्रिटिश भारतीय संघ
छपी हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (सी० डब्लयू० २९४०) से; इंडिया ऑफ़िस: ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्डस ४०२, तथा इंडियन ओपिनियन, १८-६-१९०३ ।
- ↑ यह भूल है। रानीकी घोषणा १८५८ में हुई थी ।