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२४९. प्रार्थनापत्र : नेटाल विधानसभाको

ब्रिटिश भारतीय संघ

२५ व २६ कोर्ट चेम्बर्स
रितिक स्ट्रीट
जोहानिसबर्ग
जून १०, १९०३

सेवामें

माननीय अध्यक्ष और सदस्यगण
विधान परिषद, ट्रान्सवाल उपनिवेश

प्रिटोरिया

ब्रिटिश भारतीय संघ (ब्रिटिश इंडियन असोसिएशन)के अध्यक्षकी

हैसियतसे निम्न हस्ताक्षरकर्ता अब्दुलगनीका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि,

आपका प्रार्थी ब्रिटिश भारतीय संघका, जो ट्रान्सवाल-निवासी ब्रिटिश भारतीयोंका प्रतिनिधित्व करता है, अध्यक्ष है ।

प्रार्थी उपर्युक्त संघकी ओरसे चुनावमूलक नगरपालिका परिषदोंके अव्यादेशके मसविदेकी, जिसपर यह माननीय सदन विचार कर रहा है, ११वीं धारामें किये गये संशोधनके विरुद्ध सम्मानपूर्वक आपत्ति प्रकट करता है ।

चूँकि इस संशोधनसे अन्य लोगोंके साथ-साथ ब्रिटिश भारतीय भी नगर परिषदोंके चुनावमें मतदाता बननेके अयोग्य ठहराये जाते हैं, इसलिए यह प्राचीन और राजभक्त भारतीय जातिके लिए कलंककी बात है ।

भारतीयोंने इस उल्लिखित धारापर इस माननीय सदनकी बहस बहुत दुःखके साथ पढ़ी है । इस धारामें भारतीयोंके साथ दक्षिण आफ्रिकाके मूल निवासियोंके समान आधारपर बरताव किया गया है ।

प्रार्थी इस माननीय सदनको सादर स्मरण दिलानेकी अनुमति माँगता है कि भारतीय जाति अतीत कालसे नगरपालिका स्वशासनको अभ्यस्त रही है, जैसा कि सर हेनरी समरमेनके ग्रन्थके इस उद्धरणसे प्रकट होगा :

यह कहनेमें मुझे कोई जोखिम दिखलाई नहीं पड़ती कि ग्रामीण समुदायोंमें एकत्रित लोगों द्वारा भूमिको जोतने और भोगनेकी भारतीय और प्राचीन यूरोपीय प्रणालियां सभी सारभूत विशेषताओंमें मिलती जुलती हैं ।...

ग्रामीण समुदायोंकी जाँच जितनी सावधानीसे और जितनी गहराईसे उत्साही लोगों द्वारा की गई है उतनी भारतीय जीवनके किसी अन्य अंगकी नहीं की गई। इन ग्रामीण जन-समुदायोंके अस्तित्वकी खोज और मान्यता अनेक वर्षोंसे आंग्ल-भारतीय प्रशासनकी