महानतम सफलता रही है।. . . यदि बहुत ही सामान्य भाषाका उपयोग किया जाये तो ट्यूटन वंशीय या स्कैंडिनेवियाई ग्रामीण जन-समुदायका वर्णन भारतीय ग्रामीण जन-समुदायके वर्णनका काम दे देता है। . . . फिर मौररने अपने अनुसन्धानोंमें प्राप्त जानकारीके आधारपर ट्यूटन लोगोंकी नगर व्यवस्थाकी उन्नतिका जो वर्णन किया है, वही भारतीय ग्रामकी उन्नतिपर भी लागू हो सकता है।
भारतमें इस समय भी सैकड़ों नगरपालिकाएँ हैं, जिनकी व्यवस्था भारतीय सदस्य कर रहे हैं।
ट्रान्सवालवासी बहुत-से भारतीय भारतमें नागरिक मताधिकारका उपयोग कर चुके हैं ।
प्रार्थी की नम्र सम्मतिमें, फेनिखन (वेरीनिजिंग)-सन्धिके रूपमें उल्लिखित आत्म-समर्पणकी धाराएँ ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिको प्रभावित नहीं करतीं, क्योंकि वे केवल देशीय लोगोंपर ही लागू होती हैं, जैसा कि धारा ८ से प्रकट होगा। इसमें कहा गया है कि “देशीय लोगों को मताधिकार देनेका प्रश्न तबतक न उठेगा जबतक स्वशासन जारी नहीं कर दिया जाता ।"
अतः इस प्रकारके मताधिकारका प्रश्न ब्रिटिश भारतीयोंके सम्बन्धमें नहीं उठता ।
आपके प्रार्थीकी विनीत सम्मतिमें दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश जातिकी प्रमुखता उन ब्रिटिश भारतीयोंको नगरपालिका मताधिकार दे देनेसे प्रभावित नहीं होती, जो अन्यथा उसके उपयोगके योग्य हों ।
रंगका भेदभाव यद्यपि कानूनी रूपमें पिछली सरकारने प्रस्तुत और मान्य किया था, फिर भी वह ब्रिटिश संविधानके विपरीत है; अतः प्रार्थी नम्रतापूर्वक निवेदन करता है कि वह उस विस्तृत आधारके प्रतिकूल है, जिसपर ब्रिटिश साम्राज्यका निर्माण किया गया है।
प्रार्थीका नम्रतापूर्वक निवेदन है कि उल्लिखित संशोधनमें ब्रिटिश भारतीयोंकी भावनाओं की पूर्णतः उपेक्षा की गई है।
अतः प्रार्थी नम्रतापूर्वक प्रार्थना करता है कि यह माननीय सदन इस संशोधनपर पुनर्विचार करे और राजभक्त ब्रिटिश भारतीयोंके साथ न्याय करे, या ऐसी कोई दूसरी राहत दे, जो इस माननीय सदनको उचित प्रतीत होती हो ।
और न्याय तथा दयाके इस कार्यके लिए आपका प्रार्थी, कर्तव्य समझकर, सदा दुआ करेगा।
अब्दुल गनी
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ
इंडिया ऑफ़िस : ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, ४०२ ।