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बाघ और मेमना

फिलहाल प्रवेश तो प्रायः बन्द ही कर दिया गया है। नेटालसे आनेवालोंको रोकने के लिए प्लेगका बहाना मिल गया है। डेलागोआ-बे और केपटाउनमें पड़े हुए शरणार्थियोंको अपने घर लौटनेकी इजाजत महा कठिनाईसे मिलती है। इसके विरुद्ध, जो ब्रिटिश साम्राज्यके प्रजाजन नहीं हैं ऐसे यूरोपीयोंको बिना रोकटोकके नये प्रवेश-पत्र दिये जा रहे हैं। एशियाई दफ्तरकी स्थापनाने मुसीबतोंका प्याला भर दिया है और कानूनकी निगाहमें यूरोपीय तथा भारतीयोंके बीचके भेदभावको तीव्र बना दिया है। यह ब्रिटिश प्रजाजन और गैर-ब्रिटिश प्रजाजनका भेद नहीं है, जो कि स्वाभाविक होता; यह सभ्य और असभ्यके बीचका भेदभाव भी नहीं है, जैसा कि श्री रोड्स[१]ने कहा था; यह तो अत्यन्त अस्वाभाविक अर्थात् सफेद और कालेका भेद है। संक्षेपमें, यह है वह काला बादल, जो हमारे देशभाइयोंके सिरपर ट्रान्सवालमें छाया हुआ है। किन्तु हम निराश नहीं हैं। ब्रिटिश न्यायमें हमारा विश्वास अटल है । हम आशा तथा विश्वास करते हैं कि यह शान्तिके पहलेका तूफान है। बोअर शासनके समयमें श्री चेम्बरलेनने दक्षिण आफ्रिकामें हमारे पक्षकी न्याय्यताका समर्थन किया था, हमें याद है । उपनिवेशोंके प्रधानमन्त्रियों[२]के समक्ष प्रवासका सिद्धान्त रखते हुए उन्होंने जो भाषण दिया था वह हमने पढ़ा है। युद्धके प्रारम्भमें साम्राज्य-सरकारके मन्त्रियोंने जो भाषण दिये थे, वे भी हमारे सामने हैं। वे इस बातकी जमानत हैं कि हमें उठाकर फेंक नहीं दिया जायेगा । और सबसे अधिक तो उस सर्वज्ञ और सदा जागृत परमात्मामें हमारी श्रद्धा है, जो ठीक-ठीक और निश्चय न्याय करनेवाला है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-६-१९०३

२५१. बाघ और मेमना

किसी समय कोई मेमना एक निर्मल धाराका पानी पी रहा था; कहानी है कि उसी समय वहाँ एक बाघ आया। मेमनेको खानेका कोई बहाना मिल जाये इस मंशासे उसने पानी घंघोल दिया और फिर यह जिम्मेदारी मेमनेपर लादकर उसे बकने झकने लगा। मेमनेने कहा, "हुजूर, पानी आपकी तरफसे बहकर आ रहा है, मैं उसे कैसे गेंदला कर सकता हूँ ?" बाघ बादशाहने डपट कर कहा, "चुप रह । अगर पानी तूने नहीं, तो तेरे बापने गेंदला किया होगा ।" मेमनेने नरमीसे दलील दी, 'मगर मेरा बाप तो मर चुका है।" "बकवास बन्द कर । वह तेरा कोई रिश्तेदार रहा होगा" - बाघने कहा, और पलक मारते ही मेमनेका काम तमाम कर दिया । यह बात अमर ईसपके दिनोंकी है। हमारे जमानेमें यूरोपीय बाघ भारतीय मेमनेके साथ फिर वही पुराना कमाल करना चाहता है । इसलिए वह भारतीयसे लगभग ऐसी बात कहता है, "झोपड़ीमें रहता है और तिलहे चीथड़की बू पर जीता है, इसलिए मैं तुझे बर्दाश्त नहीं कर सकता।" गरीब भारतीय गिड़गिड़ाता है, “किन्तु इस बातपर भी गौर कीजिए कि पिछले इन तमाम बरसोंमें आपकी तरह रहने की कोशिश मैंने की है, मसलन सारीकी सारी ये स्ट्रीटमें मैंने झोंपड़ियोंकी जगह खासी इमारतें बना ली हैं। यह सिलसिला धीरे-धीरे, मगर चलता तो जरूर जा रहा है।" "यह तो तेरे लिए और भी कम्बख्तीकी बात है," यूरोपीय

  1. सेसिल रोडस ।
  2. देखिए खण्ड २, पृष्ठ ३९६-९८ ।