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एशियाई प्रश्नपर लॉर्ड मिलनर

कोंचते-टोंचते रहनेकी जो मुख्य नीति अपना रखी है उसे बदलनेके लिए एक सशक्त कारण उसे मिल जायेगा।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-६-१९०३

२५२. एशियाई प्रश्नपर लॉर्ड मिलनर

दक्षिण आफ्रिकाके परमश्रेष्ठ उच्चायुक्तने एशियाइयोंके प्रति 'विरोधियोंके जंगलीपन' के विरुद्ध बड़े साहसके साथ अपने विचार प्रकट किये हैं । वे रंगभेदके एकदम खिलाफ हैं । 'जम्बेसी नदीके दक्षिणमें समस्त सभ्य मनुष्योंके अधिकार समान होंगे' --- यह महानुभावका मुद्रावाक्य है। स्वर्गीय श्री रोड्सका भी यही कथन था । पिछले महीनेकी २२ तारीखको जब ब्रिटिश भारतीयोंका शिष्टमण्डल उनसे मिलने गया तब उसके सामने भी उन्होंने अपने इन भावोंको दोहराया। शिष्टमण्डलको उन्होंने विश्वास दिलाया कि भारतीयोंके खिलाफ सरकार बिलकुल द्वेषभाव नहीं रखती। वह भूतपूर्व गणराज्यके भारतीयोंसे सम्बन्ध रखनेवाले कानूनोंको पसन्द नहीं करती । इन सारी बातोंके लिए और, इनके अलावा, शिष्टमण्डलसे उन्होंने और भी जो बहुत-कुछ कहा उसके लिए हम परमश्रेष्ठके अत्यन्त आभारी हैं। किन्तु जब लॉर्ड मिलनर ब्योरों और अपने प्रस्तावोंके व्यावहारिक प्रयोगमें उतरे तब, हम कबूल करते हैं, हमें निराशाका अनुभव हुआ। एशियाई दफ्तरकी बात लीजिए। उसके सभी अधिकारी आदरके लायक लोग हैं । और अगर इस दफ्तरके टूट जानेपर उनका कोई प्रबन्ध न किया जाये तो हमें दुःख होगा । फिर भी, इस दफ्तरसे भलाई क्या हुई ? इसके बारेमें हम महानुभावकी सफाईपर जरा विचार करें । शिष्टमण्डलके एक सदस्यने कहा कि हम उपनिवेश-सचिवसे मिल नहीं सकते । महानुभावने इसके उत्तरमें कहा कि इसीलिए तो एशियाई दफ्तर आवश्यक है। भारतीयोंकी शिकायतें वहाँ सुनी जा सकती हैं। भारतीयोंका अनुभव ऐसा नहीं है। एशियाई अधिकारी इस समय केवल मोरीका काम करता है, सो भी बहुत दोषपूर्ण मोरीका। क्योंकि उसके दफ्तरका संघटन ही सदोष है । ट्रान्सवालसे हमें जो रिपोर्ट मिली है वह तो यही सिद्ध करती है कि किसी हिन्दुस्तानीको जब कोई व्यवसाय करना होता है तब नियमित अधिकारियोंसे उसे खुद मिले बगैर चारा ही नहीं है । और एशियाई दफ्तरका अधिकारी, ध्यान देनेके लिए कोई महत्त्वका काम न होनेके कारण, "कोई-न-कोई खुराफात ही किया करता है।" क्या वह एशियाई दफ्तर ही नहीं है, जिसने कि फोटो रखनेकी नई तरकीबका आविष्कार करके अपने संरक्षितोंपर जरायमपेशा होनेका कलंक लगा दिया है ? इसलिए परमश्रेष्ठके प्रति पूर्ण आदर रखते हुए हमें कहना पड़ता है कि किसी वस्तुकी अनुपयोगिता या उपयोगिताके बारेमें सही राय वही मनुष्य दे सकता है जिसे उसका व्यावहारिक रूपसे अनुभव हो।

तीन पौंडवाले करके बारेमें परमश्रेष्ठकी धारणा दृढ़ है । ट्रान्सवालके हमारे देशभाइयोंने परमश्रेष्ठके निर्णयको नतमस्तक होकर स्वीकार करना उचित समझा है। और इसकी कोई अपील वे श्री चेम्बरलेनसे नहीं करेंगे। हम भी समझते हैं कि उनका यह निश्चय बुद्धिमानीसे भरा हुआ है। फिर भी एक साधारण मनुष्यको यह कुछ अटपटा-सा जरूर मालूम होता है कि परमश्रेष्ठ सिद्धान्ततः तो रंगभेदको बुरा बताते हैं, किन्तु अमलमें रंगभेदके आधारपर सजाके रूपमें कायम किये करका समर्थन करते हैं। क्योंकि, हमारे लिए यह रकम नहीं, बल्कि यह सिद्धान्त