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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपत्तिजनक है। सर हाइरम मैक्सिमने ठीक ही कहा है कि काफिरपर इसलिए कर लगाया जाता है कि वह काफी काम नहीं करता और एक हिन्दुस्तानीपर इसलिए कर लगाया जाता है कि वह बहुत अधिक काम करता है। दोनोंके बीच समानता सिर्फ इस बातमें है कि उनकी चमड़ीका रंग गोरा नहीं है ।

कुछ इसी तरहके, अर्थात्, रंगभेदके आधारोंपर परमश्रेष्ठ बाजारोंका समर्थन करते हैं । शिष्ट-मण्डलने बड़ी दलीलें देते हुए सुझाया था कि बाजारोंमें जाकर बसनेकी बात हर व्यक्तिकी इच्छापर छोड़ दी जाये। ऐसा करनेसे गरीब वर्गके भारतीय अपनी इच्छासे ही वहाँ जाकर रहने लगेंगे । परन्तु महानुभाव इस बातको स्वीकार नहीं कर सके । क्यों ? इसलिए कि हिन्दुस्तानी रंगदार आदमी हैं। गरीब गोरोंको किसी खास जगह बसनेको कोई कानून मजबूर नहीं कर सकता । जहाँतक खुदसे सम्बन्ध है, अंग्रेजको जबरदस्तीकी भावनासे घृणा है। एक विद्वान पादरीने कहा था कि मैं सम्पूर्ण अंग्रेज राष्ट्रको बन्धन-सहित निर्व्यसनीकी अपेक्षा मुक्त और शराबी देखना अधिक पसन्द करूँगा । एक हिन्दुस्तानी इस विद्वान पादरीकी इस सीमातक समता नहीं कर सकता परन्तु जोर-जबरदस्तीका विरोध करनेकी उसे आज्ञा मिलनी चाहिए, जब कि जबरदस्तीका व्यवहार उसके लिए अपमानजनक हो ।

परन्तु सन्तोषकी बात है कि शिष्ट-मण्डलने जिस बाजारवाली सूचनाका प्रतिवाद किया वह केवल अस्थायी है, और परमश्रेष्ठ नया कानून बनानेका विचार कर रहे हैं । हम आशा करते हैं और परमात्मासे प्रार्थना करते हैं कि परमश्रेष्ठका मार्गदर्शन करे कि वे ऐसा कानून बनायें, जिससे ट्रान्सवालमें रहनेवाले भारतीयोंकी अनन्त चिन्ताएँ और वह भार जिससे वे कराह रहे हैं, सदाके लिए दूर हो जायें। पिछले अठारह महीनोंसे वहाँके भारतीयोंको पिछली हुकूमतके जमानेसे भी ज्यादा कोंचा-टोंचा जा रहा है। अब समय आ गया है, जब कि उन्हें सुखकी साँस लेनेका अवसर मिलना ही चाहिए ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-६-१९०३

२५३."किस पैमानेसे" आदि

हम परमश्रेष्ठ लॉर्ड मिलनरसे अनुरोध करते हैं कि हमने जिस काव्य पंक्तिको इस लेखका शीर्षक बनाया है, उसपर विचार करें । परमश्रेष्ठने गम्भीरतापूर्वक भारत सरकारके सन्मुख यह प्रस्ताव रखा है कि वह ट्रान्सवाल उपनिवेशका विकास करनेके लिए भारतसे गिरमिटिया मजदूर बुलवानेकी इजाजत इस शर्तपर दे दे कि गिरमिटकी मियाद खत्म होते ही उन्हें जबरन भारत लौटाया जा सकेगा। ज्ञात हुआ है कि अभीतक तो भारत सरकारने उनके इस प्रस्तावपर ध्यान नहीं दिया है । परन्तु हम परमश्रेष्ठसे पूछना चाहते हैं कि जैसा प्रस्ताव उन्होंने भारत-सरकारके सामने रखा है, क्या वैसा ही वे एक क्षणके लिए भी यूरोपीयोंके सम्बन्धमें स्वीकार करेंगे ? हमारा खयाल है, कदापि नहीं। श्वेत-संघ (व्हाइट लीग)से हम इस विषयमें पूरी तरह सहमत हैं कि अब सहायता देकर भारतीयोंको यहाँ नहीं बुलवाया जाना चाहिए। और यह कि, यूरोपीयों को यहाँ आनेके लिए न केवल प्रोत्साहन बल्कि सहायता भी दी जानी चाहिए। हम उनकी इस भावनाकी जरूर कद्र कर सकते हैं कि, चूँकि इस देशकी आबहवा यूरोपीयोंके रहने लायक है, इसलिए अगर सारे साम्राज्यकी भलाईमें कोई बाधा न पड़ती हो तो यह देश