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दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीय

यूरोपीयोंके लिए सुरक्षित कर दिया जाना चाहिए। हमारा मतभेद तो तब होता है, जब कि संघ कहता है कि यहाँ स्वतन्त्र भारतीयोंका आना एकदम रोक दिया जाये, अथवा जो हिन्दुस्तानी यहाँ पहलेसे बस गये हैं उनको समान अवसर न दिया जाये। रंग-विद्वेषका असली हल यह नहीं है कि आप हर रंगदार आदमीको जानवर समझें, मानो उसके भावनाएँ ही नहीं हैं; बल्कि यह है कि, आप इस उपनिवेशको गोरे लोगोंसे भर दें । अगर यह नहीं हो सकता और आपको भारतीयोंके श्रमकी जरूरत है ही, तो हम कहेंगे, न्यायसे काम लीजिए, भलमनसाहत वरतिये, जैसा सलूक अपने साथ चाहते हैं वैसा ही हमारे साथ कीजिए ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-६-१९०३


२५४. दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीय

ऑरेंज रिवर कालोनी[१]

पुराने ऑरेंज फ्री स्टेटके एशियाई-विरोधी कानूनको हम अन्यत्र पूरा-पूरा उद्धृत कर रहे हैं । यह कानून भारतीयोंको पैर जमाने का मौका नहीं देता । वहाँ वे निरे मजदूरोंकी हैसियतसे रह सकते हैं, और वह भी राज्याध्यक्षकी आज्ञाके बिना नहीं । अगर कोई भारतीय इस इजाजतके बिना पाया जाये तो उसे २५ पौंडका जुर्माना देना होगा, या तीन महीनेकी कैद भोगनी होगी । इसके अलावा उन्हें सालाना दस शिलिंगका व्यक्ति-कर देना होगा । आश्चर्य है कि केप कालोनीसे आनेवाले मलायी लोगोंपर यह कानून लागू नहीं है । यद्यपि ब्रिटिशोंको इस देशपर अब कब्जा किये दो वर्षसे ज्यादा हो गये हैं, फिर भी इस ब्रिटिश उपनिवेशकी कानूनोंकी किताबको यह कानून अबतक कलंकित कर रहा है।

इस कानूनका इतिहास संक्षेपमें यह है । सन् १८९० से पहले यहाँ कुछ ब्रिटिश भारतीय व्यापारी रहते थे । उनसे यूरोपीय व्यापारी इतने चिढ़ गये कि उन्होंने उपनिवेशके अध्यक्षको एक अर्जी दी, जिसमें सम्पूर्ण भारतीय जातिपर हर तरहके दोष लगाये। एक दोष यह बताया कि ये स्त्रीको आत्मा-हीन[२] समझते हैं। दूसरा दोष यह था कि इनके आनेसे सब प्रकारकी घिनौनी बीमारियाँ राज्यमें फैल गई है । उस समय ऐसी कोई प्रथा कायम नहीं हुई थी जिसके आधारपर ब्रिटिश सरकार उपनिवेशके अध्यक्षको ऐसे नीति-हीन और भयंकर रोगोंसे ग्रसित आदमियोंके प्रवेशको रोकनेकी माँग करनेवाले भले व्यापारियोंकी अर्जी मंजूर करनेसे मना कर सकती । इसलिए उपर्युक्त कानून पास हो गया। हिन्दुस्तानी व्यापारियोंको उपनिवेशसे बाहर निकाल दिया गया। उन्हें मुआवजा नहीं दिया गया। इसकी शिकायत ब्रिटिश सरकारसे की गई। परन्तु उसने अपने आपको लाचार पाया । वहाँ उसकी कोई सत्ता नहीं थी । और इस कारण उन 'गुनहगार' व्यापारियोंको कोई दस हजार पौंडतककी हानि उठानी पड़ी।

स्वभावतः सवाल पैदा होता है कि क्या अब वहाँ ब्रिटिश सरकारकी सत्ता है ? हमें मालूम हुआ है कि पुरान दो व्यापारियोंने इसकी जाँच करके देख लिया है और उन्हें नकारात्मक उत्तर

  1. ऑरेंज फ्री स्टेटको अपने अधिकारमें कर लेनेपर अंग्रेजोंने यह नाम दिया ।
  2. देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४७ ।