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साम्राज्य भाव या मनमानी ?

न्यायका बरताव चाहते थे । किन्तु वहाँ ब्रिटिश सत्ता स्थापित होते ही, एक ही साम्राज्यके प्रजाजन होनेपर भी, उन्होंने इन जातियोंका खयाल एकदम छोड़ दिया। फिर सर जॉर्ज फेरारने यह भी स्वीकार किया कि रंगदार जातियोंके लोगोंको यह जानकर कितना भारी अपमान मालूम होगा कि केवल इसलिए कि उनकी चमड़ी रंगदार है, उनको नगरपालिकाओंमें मताधिकारसे वंचित किया जा रहा है । परन्तु सर जॉर्ज केवल एक नामजद सदस्य थे । इसलिए उन्होंने सोचा कि वे सरकारी उपधाराके पक्षमें अपनी राय नहीं दे सकते। अब, सरकारी उपधारा है क्या ?

इसमें यह व्यवस्था है कि मतदाता सूचीमें उन तमाम आदमियोंका नाम दर्ज किया जा सकेगा जो अधिकारीके सन्तोष-योग्य रूपमें अंग्रेजी या डच भाषा पढ़ और लिख सकते हैं और जो जायदाद-सम्बन्धी अमुक योग्यता भी रखते हैं। हर सदस्यने यह मंजूर किया कि इस धाराके अनुसार रंगदार जातियोंमें से बहुत कम आदमियोंके नाम मतदाता सूचीमें दर्ज किये जा सकते हैं। इस प्रकार, प्रत्यक्षतः, जैसा कि श्री लवडेने सीधे-सच्चे और मुंह फट तरीकेसे कहा, प्रश्न विशुद्ध रूपसे "रंगका है।" सर परसी फ़िट्ज़पैट्रिक हमें यह विश्वास दिलाना चाहते थे कि यह ब्रिटिश जातिकी प्रभुता कायम रखनेका प्रश्न है। परन्तु बात यह नहीं थी । अंग्रेजोंके प्रभुत्वको कहीं खतरा नहीं था । वह तो निश्चित था। बल्कि सर परसीके प्रति सम्पूर्ण आदर रखते हुए हम कहेंगे कि गैर-सरकारी सदस्योंके इस कदमने तो उलटे ब्रिटिश प्रजाजनोंके एक वफादार हिस्सेकी साम्राज्य-निष्ठाको कमजोर करनेका काम किया है । सत्ताके हस्तान्तरणवाली धाराएँ भी खुद इसकी पुष्टि कर रही हैं कि सरकारकी इस धाराने उन धाराओंको भले ही शब्दोंमें भंग नहीं किया हो, परन्तु उनके हेतुको जरूर समाप्त कर दिया है। क्योंकि, बोअर लोग राजनीतिक और नागरिक मताधिकारमें भेद कर ही नहीं सकते थे । माननीय सदस्योंने धाराके जिस अंशका उल्लेख किया है वह इस प्रकार है :"देशके असली निवासियोंको मताधिकार देनेके प्रश्नका निर्णय स्वायत्त शासनकी स्थापनाके बाद किया जायेगा ।" यदि हम क्षण-भर मान भी लें कि इस दलीलमें कुछ तथ्य है तो भी वह दक्षिण आफ्रिकाके असली बाशिन्दोंके अलावा रंगदार जातियोंपर लागू नहीं होता । और ब्रिटिश भारतके निवासियोंपर तो हरगिज नहीं । और केवल उन्हींसे इस समय हमारा मतलब है । अगर गैर-सरकारी सदस्योंका कार्य आश्चर्यजनक और दुःखजनक था तो स्वयं सरकारके बारेमें हम क्या कहें ? उसने पहले तो अपनी धाराका बड़ी योग्यताके साथ प्रतिपादन किया, और बहुमत भी उसीका समर्थन कर रहा था; परन्तु अन्तमें गैर-सरकारी सदस्योंके सामने सरकार झुक गई। हमें कहना पड़ता है कि इसमें सरकारने अपनी मर्यादाओं और जिम्मेवारीको भी छोड़ दिया । अब तो ऐसा दिखाई देता है कि मानो ट्रान्सवाल न केवल सारे दक्षिण आफ्रिकापर शासन करनेवाला है, बल्कि ब्रिटिश संविधानमें जिन सिद्धान्तोंका अत्यन्त लगनके साथ पोषण किया गया है और जो सिद्धान्त समयकी कसौटीपर खरे उतरे हैं, उन्हींको यह अपने पैरों तले रौंदनेवाला है। तेरह गैर-सरकारी सदस्योंकी इच्छाके प्रति आत्मसमर्पण करनेके सरकारी निर्णयको घोषणा करते हुए सर रिचर्डने कहा, ऐसे प्रश्नपर सरकार गैर-सरकारी सदस्योंकी भावनाओंका निरादर नहीं करना चाहती। हम तो अपने भोलेपनमें यह समझे बैठे थे कि सरकार अगर किसी प्रसंगपर अपनी दृढ़ता दिखा सकती है तो वह यही हो सकता है। हम नहीं समझ पा रहे हैं कि इतने थोड़ेसे आदमी-भले वे कितने ही प्रभावशाली क्यों न हों -- ब्रिटिश सरकारकी बुनियादी नीतिमें इतना भारी बदल करनेमें कैसे सफल हो गये । हाँ, गैर-सरकारी सदस्योंने यह जरूर कहा था कि यह कानून तो अस्थायी है और कोई कारण