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२५६. "वैद्यजी, अपना इलाज करें"

डर्बनकी नगर-परिषदने बाजारका प्रश्न अब बाकायदा उठाया है। अतः अब उससे यह पूछना अनुचित न होगा कि वह अपने ईस्टर्न फ़्ले और वेस्टर्न फुले नामक स्थानोंके बारेमें क्या करनेवाली है । हम नहीं समझते, यह बतानेके लिए किसी सबूतकी जरूरत है कि सफाईकी दृष्टिसे ये दोनों स्थान कितने गन्दे और दुर्गन्धयुक्त हैं । इनका वर्णन करनेमें हमने जो कड़ी बातें कही हैं उनके समर्थनमें दो सज्जनोंके प्रमाणपत्र पेश कर देना काफी होगा। वे हैं माननीय श्री जेमिसन और श्री डॉएटर्टी। पहले सज्जन हमारे उपनिवेशमें सफाई सम्बन्धी सुधारोंके कर्णधार हैं और दूसरे सफाई-दारोगा हैं । ये स्थान इसलिए गन्दे और दुर्गन्धयुक्त नहीं हैं कि यहाँके रहनेवाले भारतीय हैं, बल्कि इसलिए ऐसे हैं कि इनकी स्थिति ही नितान्त अस्वास्थ्यकर है, और यहाँ सफाई सम्बन्धी नियन्त्रण बिलकुल ही नाकाफी है । डर्बन जैसे आदर्श नगरमें इन "दो प्लेगके अड्डों" को बने रहने देकर नगर परिषदने भारतीयोंके सामने सफाईका पदार्थ पाठ प्रस्तुत किया है। बाजारोंके बारेमें मेयरकी तजवीज[१] पर बहस करते समय नगरपालिकाके सदस्योंने भारतीयोंके कल्याणके बारेमें बड़ी चिन्ता प्रकट की थी। उन्होंने बड़ी सज्जनताके साथ यह दलील पेश की थी कि भारतीयोंके रहनेके लिए बाजारों का होना वास्तवमें उन्हींके हितमें आवश्यक है । परन्तु परिषद डर्बनमें बसे हुए हजारों भारतीयोंको जबरदस्ती अलग बसानेका काम उठानेका विचार करे, इससे पहले क्या हम उससे निवेदन कर सकते हैं कि वह पहले ईस्टर्न फ़्ले और वेस्टर्न फ़्लेको ले और उन्हें पूर्णतः व्यवस्थित करके निवासके योग्य बना दे ? यह कहना बहुत सहज है कि जब भारतीय बिखर कर बसे हुए हैं और जब उनकी आदतें यूरोपीयोंसे इतनी भिन्न हैं तब कारगर निरीक्षण सम्भव ही नहीं है। हम इन दोनों प्रश्नोंपर बहस करनेके लिए तैयार हैं और यह कहने का साहस करते हैं कि आज भी समस्त भारतीय, नियमानुकूल, विशेष निर्दिष्ट बस्तियोंमें रह रहे हैं। और, सफाई की व्यवस्थासे उनकी आदतोंका वास्तवमें कोई सरोकार नहीं है। क्योंकि, वह व्यवस्था तो नगरके उपनियमोंके अनुसार बड़ी सफलताके साथ लागू की जा सकती है। विपरीत आदतें कोई बिगाड़ नहीं कर सकतीं। तमाम मकान ठीक उन नक्शोंके अनुसार ही बनाये जाते हैं, जिनको नगर-परिषद मंजूर करती है । और जहाँतक सफाईको कायम रखनेका सम्बन्ध है, वह तो नगरके उपनियमों का सख्ती और कठोरताके साथ पालन करनेका ही प्रश्न है। क्योंकि, अगर नगर-परिषद भारतीयोंको अलग बसानेमें सफल हो जाती है, तब क्या वह वहाँ सफाईका बिना कोई बन्दोबस्त किये उन्हें सर्वथा अपने ऊपर निर्भर रहनेको छोड़ देगी ? या, उसका मंशा, उन्हें अलग करनेके बाद, ज्यादा कठोर नियंत्रणमें रखनेका है ? हम समझ नहीं पा रहे हैं कि जो कठिनाई है ही नहीं, वह भारतीयोंको बलपूर्वक अलग बसानेसे कैसे हल हो जायेगी ?

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-६-१९०३
  1. देखिए " मेयरकी तजवीज", ४-६-१९०३ ।