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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

हमारे दिल एक दूसरेके निकट आते जायेंगे और इस साम्राज्य रूपी विशाल परिवारके भिन्न- भिन्न सदस्य निकट भविष्यमें ही दक्षिण आफ्रिकामें पूर्ण शान्तिके साथ रहने लगेंगे । सम्भव है, वह शुभ दिन इस पीढ़ीमें न आये और उसे हम न देख पायें। परन्तु वह आयेगा जरूर, इससे कोई समझदार आदमी इनकार नहीं कर सकता। अगर ऐसी बात है तो हम अपनी शक्ति-भर कोशिश करें कि वह शुभ दिन जल्दीसे-जल्दी आये । किन्तु इसका रास्ता एक ही है --- यह कि, चर्चामें हम शान्ति न खोयें, अपना आदर्श ऊँचा रखें और सचाईसे कभी न हटें। एक बात और भी करें। हम अपने-आपको अपने प्रतिपक्षीकी स्थितिमें रखकर सोचें कि उसके दिमागमें क्या विचार चल रहे होंगे। उसके स्थानपर हम होते तो हमपर कैसी बीतती और हम क्या करते । मतलब यह कि केवल मतभेदकी बातोंपर ही ध्यान न बल्कि विचारोंमें समानता कहाँ-कहाँ है, यह भी सोचते रहें ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-६-१९०३

२६१. नया कदम

नेटाल संसदके वर्तमान अधिवेशनमें सरकार द्वारा पेश किये जानेवाले नये प्रवासी-विधेयक (इमिग्रेशन बिल) को हमने पढ़ा। एक बात हम सबको स्वीकार करनी होगी। वह है, स्वराज्य प्राप्त उपनिवेशोंको अपनी सीमाके अन्दर प्रवासपर नियन्त्रण रखनेका पूरा अधिकार है । और उनके इस अधिकारमें इंग्लैंडकी सरकार तबतक हस्तक्षेप नहीं करेगी जबतक वे बुनियादी ब्रिटिश नीतिका उल्लंघन नहीं करेंगे। इसलिए वर्तमान विधेयकके विरुद्ध हमें सिवा इसके और कुछ नहीं कहना है कि अभी जो कानून जारी है उसे पूरा-पूरा मौका नहीं दिया गया है। दूसरे, उसे पेश करते समय उससे जो-जो आशाएँ की गई थीं उनको पूरा करनेमें वह असफल नहीं रहा है। हमारा यह भी खयाल है कि सारी परिस्थितिका ठीक तरहसे परीक्षण नहीं किया गया है। फिर भी चूंकि सरकारने अपना विधेयक पेश किया है, इसलिए यह आशा करना तो व्यर्थ होगा कि वह इसे पूर्णतया वापस ले लेगी । तथापि हम इतना तो कहेंगे कि जब यह विधेयक विचाराधीन है, और इसका असर भारतीय समाजपर बहुत अधिक पड़नेवाला है, तब क्या यह शोभाजनक नहीं होगा कि इस विषयमें उस समाजकी न्यायोचित माँगें पूरी कर दी जायें ?

हम नहीं सोचते कि शैक्षणिक कसोटीको ऊँचा करनेकी जरा भी जरूरत है। श्री हैरी स्मिथ[१]ने अपनी पिछली वार्षिक रिपोर्टमें लिखा है कि करीब एक सौ प्रवासी शैक्षणिक कसौटीको पार करके उपनिवेशमें आये । वर्तमान कसौटी उचित है, यह बतानेके लिए हमारी रायमें यही प्रत्यक्ष प्रमाण है । परन्तु अगर सरकारकी राय यह हो कि इस कसौटीको और भी कड़ा करनेकी जरूरत है तो इसमें महान् भारतीय भाषाओंको भी शामिल किया जाना चाहिए। पिछले कई वर्षोंसे भारतीय यह माँग करते रहे हैं। हम आशा करते हैं, इस सुझावपर सरकार अवश्य विचार करेगी। यूरोपकी अधिकांश भाषाएँ जिस आर्य भाषा-परिवारकी हैं उसीकी ये भारतीय भाषाएँ भी हैं। जो हो, यह प्रयोग तो करके देखने लायक है ही । हम अपने निजी अनुभवसे

  1. प्रवास-प्रतिबन्धक अधिकारी, नेटाल ।