पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/४२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३७९
पत्र : छगनलाल गांधीको

सकता । क्या इतने सारे दिनोंतक वह वहाँ रहनेकी बात मान लेगी ? अगर न माने तो फिर निश्चय ही सालके अन्तमें वह यहाँ आये और मैं चुपचाप १० या ऐसे कुछ बरसोंके लिए जोहानिसबर्गमें बसना तय कर लूँ। वैसे यह बड़ी दारुण बात है कि एक नया घर यहाँ बसाओ और फिर उसे मिट्टीमें मिलाओ -- नेटालकी तरह | अनुभव कहता है, यह सौदा बड़ा महँगा पड़ेगा और अगर नेटालमें बड़ी बाधाएँ आड़े आती थीं तो यहाँ जोहानिसबर्गमें वे उससे ज्यादा ही होंगी। इसलिए, कृपा करके इसपर विचार करें और कस्तूरबाई वहाँ हो तो आप सब सलाह करें और मुझे खबर दें। यों मेरा खयाल है कि अगर वह वहीं रुकने की बात मान जाये, कमसे-कम फिलहाल, तो मैं अपना पूरा ध्यान सार्वजनिक काममें लगा सकूंगा । वह जानती है, नेटालमें उसे मेरा साथ बहुत कम मिल पाता था; शायद जोहानिसबर्गमें और भी कम मिले। कुछ भी हो मैं बिलकुल उसकी भावनाओंके मुताबिक चलना चाहता हूँ और अपनेको उसके हाथोंमें सौंपता हूँ। अगर आना हो तो वह अक्टूबरमें तैयारी कर ले और नवम्बरके शुरूमें रवाना हो जाये । अबसे तबतक खबरें आने-जानेके लिए काफी वक्त रहेगा ।

मुझे बड़ी खुशी हुई कि बाली[१]का विवाह इस वर्ष नहीं होगा। जितनी देरसे उसकी शादी हो उतना ही उसके और उसके भावी पतिके लिए अच्छा होगा ।

आपका, हृदयसे,
मो० क० गांधी

हाथसे लिखी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल ( सेवाग्राम, संख्या १ ) से ।

२६६. पत्र : छगनलाल गांधीको

जोहानिसबर्ग
जून ३०, १९०३

चि० छगनलाल,

हरिदासभाईके[२] नाम लिखे पत्रकी नकल साथ भेजता हूँ । उसमें मेरे सारे समाचार हैं । अपनी काकीको यहाँकी हालत पढ़कर सुना देना और समझा देना। वह वहीं रहना पक्का करे, यह यहाँकी महँगाईको देखते हुए बहुत योग्य लगता है । अगर वह वहाँ रहे तो यहाँकी बचतसे वह और बच्चे वहाँ हिन्दुस्तानमें ज्यादा आरामसे रह सकेंगे। उस हालतमें मैं दो-तीन सालके अरसेके बाद लौट सकूंगा । लेकिन अगर वह आग्रह करे तो चलते वक्त मैंने उसे जो वचन दिया था उससे हदूंगा नहीं । अगर वह रवाना होना तय करे तो अक्टूबरतक सब तैयारी पूरी करके नवम्बरमें पहले जहाजसे रवाना हो जाओ। मगर पहले उसे यह समझाने की कोशिश जरूर करो कि हिन्दुस्तानमें रहना उत्तम है। रेवाशंकरभाईसे सलाह करके वह चाहे बम्बई चाहे राजकोटमें रहना पसन्द कर सकती है। अगर तुम हरिलालके साथ अभीतक रवाना नहीं हुए हो और तुम्हारी काकी तुम्हारे साथ आना चाहती है तो रामदास और देवदासको भी साथ लेते आओ । मणिलाल और गोकुलदासका बम्बईमें पढ़नेका और रहनेका ठीक प्रबन्ध करना जरूरी है । अगर मणिलाल वहाँ रुकना पसन्द न करे तो उसे भी साथ ले आना । गोकुलदास

  1. हरिदासभाईकी पुत्री ।
  2. देखिए पिछला शीर्षक ।