पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/४२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अगर बम्बईमें ही अपनी पढ़ाई चलाता रहे तो अच्छा होगा । उसके मनमें क्या है और रजियाबेनका इस बारेमें क्या कहना है, लिखना ।

जो फेहरिस्त मैंने भेजी है, उसमेंसे जितनी किताबें और चित्र बनें, लेते आना । सब पैसा रेवाशंकरभाईके पास जमा कर देना अच्छा होगा। फूलीका खाता बन्द कर दिया जाये । शिवलालभाईके साथ हिसाब-किताब साफ कर लो -- जरूरत पड़े तो राजकोट जाकर। उसके बाद तुम्हारे पास यात्राके लिए काफी पैसा बचेगा ।

अगर तुम्हारी काकी राजकोट रहना तय करे तो मणिलालको यहाँ ले आना अच्छा होगा ।

मगनलाल[१]का काम टोंगाटमें अच्छा चल रहा है ।

यह पत्र रेवाशंकरभाईको पढ़कर सुना देना। जल्दीमें लिखा है, इसलिए उन्हें खुद पढ़नेमें तकलीफ होगी ।

मोहनदासके आशीर्वाद

गुजराती पत्रके अंग्रेजी अनुवादसे, माई चाइल्डहुड विद गांधीजी, पृष्ठ १९२-९३ ।

२६७. आय-व्ययका चिट्ठा

जो व्यापारी केवल अपने वस्तु-भण्डार और बकाया लेनदारियोंका ही ध्यान रखता है और देनदारियोंका खयाल नहीं करता उसका बधिया बैठ जाना निश्चित है। दुर्भाग्य उसके सामने, आकर एकाएक खड़ा होता है और जब महाजन उसे चारों तरफसे घेर लेते हैं तब माल और बकाया एक ही झपाटेमें साफ हो जाते हैं । तब उसकी बचत अदृश्य हो जाती है और वह दिवालिया हो जाता है। इसलिए समझदार व्यापारी हमेशा ध्यान रखता है कि उसकी देनदारियोंका समयपर भुगतान होता रहे। तब उसकी बचत, चाहे वह थोड़ी हो या अधिक, असली बचत होगी। यह बात, जैसी व्यक्तियोंके साथ वैसी ही समुदायोंके साथ, और जैसी आर्थिक मामलोंमें वैसी ही राजनीतिक मामलोंमें लागू होती है।

दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीयोंकी मुख्य शिकायतोंका हमने लेखा तैयार किया है और विश्वास है कि हमने पूर्ण रूपसे सिद्ध कर दिया है कि उनकी जड़में अविवेक और तर्कहीन रंग-विद्वेष है। अब हम दूसरे पहलूकी जाँच करके देखना चाहते हैं कि इस स्थितिके लिए हम स्वयं किस हदतक जिम्मेदार हैं । यदि हम अपने दोषोंको समझकर उन्हें दूर करनेकी चेष्टा नहीं करेंगे तो एक दिन ऐसा आ सकता है जब हम देखेंगे कि जिसे हम खातेमें जमा समझ रहे थे वह घाटेमें परिणत हो गया है।

तो, हमारे ऊपर यह इलजाम है कि हम गन्दे रहते हैं और हमारा रहन-सहन कंजूसोंका-सा है । हमारी रायमें दोमें से एक भी बात जाब्तेसे सिद्ध नहीं की जा सकती। जहाँतक सफाईका सम्बन्ध है, हमारे देशभाई इस बातका पूर्ण प्रमाण देनेमें समर्थ रहे हैं कि, वर्गकी हैसियतसे ब्रिटिश भारतीय यूरोपीयोंकी अपेक्षा किसी प्रकार घटकर नहीं हैं। यह भी सिद्ध कर दिया गया है कि भारतीय तिलहे चिथड़ेकी बूपर जिन्दा नहीं रहते। बहुत विचार करनेपर ये इलजाम इतने ही निकल सकते हैं कि भारतीय मैले-कुचैले और अत्यन्त मितव्ययी होते हैं। परन्तु राजनीतिके मामलोंमें जहाँ जनसमूहसे काम पड़ता है, जाब्तेकी गवाहीका कोई अर्थ नहीं होता। यहाँका

  1. छगनलाल गांधीके भाई, गांधीजीके भतीजे और सहयोगी ।