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सच्चा साम्राज्य-भाव

जन-समाज तो यही राग अलापता रहेगा कि भारतीयोंकी आदतें इतनी गन्दी हैं कि उनसे सारे समाजको खतरा है और उनका रहन-सहनका तरीका इतना गिरा हुआ है कि वे तिलहे चिथड़ेकी बूपर जिन्दा रहते हैं ।

इसमें शक नहीं कि इन दोनों बातोंमें हम इससे अच्छे बन सकते हैं । यद्यपि यह बिलकुल सही है कि हमारी झोंपड़ियों और अत्यधिक सादी आदतोंका असली कारण हमारी गरीबी ही है, तथापि गरीबी कितनी ही क्यों न हो वह उस बेहद मैलेपन और घृणित सादगीका कारण नहीं हो सकती, जो कि अनेक भारतीय घरोंमें देखी जाती है । यह निश्चय ही हमारे हाथमें है कि हम अपने झोंपड़ोंको अच्छी तरह साफ रखें और अपमानजनक वातावरणमें भी --- जैसा कि डर्बनके ईस्टर्न फ़्ले, वेस्टर्न फ़्ले एवं ट्रान्सवालकी बस्तियोंमें है --- साफ सुथरे ढंगसे रहनेका आग्रह रखें ।

अपने पड़ोसियोंसे सीखनेका अनूठा अवसर हमें मिला है । अंग्रेज कहीं अकेले पड़ जायँ तो वे अव्यवस्थामेंसे व्यवस्था पैदा कर लेंगे और घोर अरण्यको सुन्दर उद्यानका रूप दे देंगे । डर्बनकी सुन्दरताका श्रेय अंग्रेजोंके पराक्रम और उनकी सुरुचिको ही है। सच पूछिए तो भारतवासी आफ्रिकामें उनसे पहलेसे आये हुए हैं । अंग्रेजोंके जंजीबारमें आगमनसे पहले ही बहुत बड़ी संख्यामें भारतीय वहाँ आकर बस चुके थे । उन्होंने वहाँ बड़ी-बड़ी इमारतें तो खड़ी कर दीं, परन्तु वे शहरको सुन्दर नहीं बना सके । कारण स्पष्ट है । समाजकी भलाईके लिए हमारे अन्दर एकता, सहयोग और पूरे-पूरे त्यागकी भावना नहीं है । अपनी मुसीबतोंको हम दैवी कोप समझ लेते हैं। मुसीबतोंसे जो सबक हमें सीखने चाहिए उनको अगर हम सीखने लग जायें तो वे बेकार नहीं साबित होंगी। उस परीक्षामें से हम सामाजिक गुणोंमें अधिक समृद्ध होकर निकलेंगे, अपने उद्देश्यको न्यायकी दृष्टिसे अधिक बलवान बना देंगे और शुरूमें हमने जिस दृष्टान्तका उपयोग किया है उसीकी भाषामें कहना चाहें तो व्यापारके प्रारम्भमें जितनी पूंजी लेकर हम निकले थे उससे कहीं अधिक रकम हमारे पास जमामें होगी । समस्त दक्षिण आफ्रिकामें बसे विचारशील भारतीयोंके समक्ष हमारा यह निवेदन विचारार्थ प्रस्तुत है ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २-७-१९०३

२६८. सच्चा साम्राज्य-भाव

ब्रिटिश जहाजोंपर भारतीय खलासियोंको काममें लगानेके बारेमें श्री चेम्बरलेनने आस्ट्रेलियाके उपनिवेशोंको जो जवाब दिया है वह ध्यान देने योग्य है । आस्ट्रेलियाके द्वारा उन्होंने वास्तवमें समस्त उपनिवेशोंको सन्देश दिया है और असन्दिग्ध शब्दोंमें इस ब्रिटिश नीतिको सबके सामने रख दिया है कि ब्रिटिश साम्राज्यके रंगदार प्रजाजनोंके साथ भी वैसा ही बरताव होना चाहिए जैसा अन्य ब्रिटिश प्रजाजनोंके साथ होता है । हमें आशा करनी चाहिए कि दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए ब्रिटिश भारतीयोंके प्रति व्यवहार करनेमें वे इस नीतिपर पूरी दृढ़ताका परिचय दे सकेंगे। जो हो, रंगदार जातियोंके विषयमें ब्रिटिश नीतिकी स्पष्ट घोषणा करके श्री चेम्बरलेनने हम ब्रिटिश भारतीयोंका बड़ा उपकार किया है ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २-७-१९०३