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२६९. पत्र : गो० कृ० गोखलेको

२५ व २६ कोर्ट चेम्बर्स
नुक्कड़, रिसिफ ऐंड एण्डर्सन स्ट्रीट
जोहानिसबर्ग
जुलाई ४, १९०३

प्रिय प्रोफेसर गोखले,

मैं समय-समयपर आपको दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी स्थितिके सम्बन्धमें कागज़-पत्र भेजता रहा हूँ । यद्यपि, मैं जानता हूँ कि आपके पास बहुत अधिक अन्य सार्वजनिक कार्य है, फिर भी अपनी शिकायतोंके बारेमें आपको कष्ट देनेके सिवा मेरे पास और कोई चारा नहीं है । यह महसूस किया जाता है कि भारतमें पर्याप्त रूपमें सतत कार्रवाई नहीं की जा रही है । मेरा विश्वास है कि वाइसराय उपनिवेशोंकी कार्रवाइयोंका तीव्र विरोध कर रहे हैं । परन्तु यदि उनके हाथ लोकमतके द्वारा मजबूत नहीं किये जाते, तो स्थिति हाथसे निकल भी सकती है । विचित्र बात तो यह है कि यहाँ भी लॉर्ड मिलनर न्याय करनेके लिए अत्यन्त उत्सुक मालूम पड़ते हैं, परन्तु यहाँ लोकमतके नामपर जो कुछ भी कहा जाता है उससे वे प्रायः डर जाते हैं। वास्तवमें दक्षिण आफ्रिकाके लोग धन एकत्र करनेमें इतने व्यस्त हैं कि उनका इस ओर ध्यान ही नहीं जाता कि उनके अपने क्षेत्रसे बाहर क्या हो रहा है । किन्तु ट्रान्सवाल तथा ऑरेंज रिवर कालोनीमें कुछ ऐसे स्वार्थी आन्दोलनकारी हैं जो एशियाई-विरोधी कानूनोंको ढीला करनेके विरुद्ध गवर्नरके पास निरन्तर प्रतिवाद भेजते रहते हैं । इसलिए मेरे विचारमें यह नितान्त आवश्यक है कि इस तरहके आन्दोलनको प्रभावहीन बनाने के लिए सम्पूर्ण भारतमें एक सुसंचालित आन्दोलन शुरू किया जाये, और जारी रखा जाये। मुझे आशा है, आप समय निकाल कर इस मामलेको हाथमें लेंगे। आप जानते हैं, जब मैं कलकत्तेमें था, श्री टर्नर[१]ने मुझसे क्या कहा था और इसमें मुझे कोई सन्देह नहीं कि यदि आप उन्हें लिखें या उनसे मिल सकें तो वे कार्रवाई करनेके लिए तैयार हो जायेंगे ।

मैं श्री मेहता[२] को लिख रहा हूँ, परन्तु मुझे आशा है आप इस मामलेमें उनसे मिलेंगे ।

आपका सच्चा,
मो० क० गांधी

मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (जी० एन० ४१०२)से|

  1. बंगाल व्यापार-संघ ( बंगाल चेम्बर ऑफ कॉमर्स)के अध्यक्ष ।
  2. सर ( उस समय श्री) फीरोजशाह मेहता ।