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२७०. १८५८ की घोषणा

आजकल ब्रिटिश भारतीयोंके खिलाफ सारे दक्षिण आफ्रिकामें लगातार आन्दोलन किया जा रहा है। ऐसे समय दक्षिण आफ्रिकाके निवासियोंका ध्यान इस स्मरणीय घोषणाकी तरफ खास तौरसे जाना चाहिए। इसे “ब्रिटिश भारतीयोंका मैग्ना कार्टा"[१] कहा गया है । आशा है, वे उसका अध्ययन करेंगे। इस घोषणाके आदि कारणका उल्लेख कर देना असंगत न होगा । संसार जानता है कि सन् १८५७ का वर्ष सारे ब्रिटिश राज्यके लिए एक बड़ी चिन्ता और परेशानीका वर्ष बन गया था । इसका कारण भारतवर्षका महान् सिपाही विद्रोह था। एक समय तो संकटने इतना विकट रूप धारण कर लिया कि अन्तिम परिणाम दुविधाका विषय बन गया । भारतीय जनताके बुरेसे-बुरे अन्धविश्वासोंको जगाया गया, धर्मकी बड़ी दुहाई दी गई, और जनताके मनको विचलित करने और उसे ब्रिटिश शासनका दुश्मन बनानेके लिए दुष्ट प्रकृतिवालोंसे जो भी सम्भवतः बन सकता था, सब किया गया। ऐसी संकट और चिन्ताकी घड़ीमें अधिकांश भारतीय जनता अपनी वफादारीमें दृढ़ और अडिग रही । स्वर्गीय सर जॉन लॉरेन्सको पंजाबका रक्षक कहा गया है। निश्चय ही वे एक बड़ी हदतक सम्पूर्ण ब्रिटिश भारतके रक्षक थे; किन्तु इस पदवीके वे जो अधिकारी बने उसका कारण यह था कि उन्होंने पंजाबकी उन लड़ाकू जातियोंकी वफादारीका अच्छेसे-अच्छा उपयोग कर लिया जो इससे कुछ ही वर्ष पहले चिलियाँवालाके ऐतिहासिक मैदानपर अंग्रेजी फौजोंका कड़ा मुकाबला[२] कर चुकी थीं। सारे भारतवर्षमें आम लोग वफादार बने रहे और उन्होंने बलवाइयोंका साथ देनेसे इनकार कर दिया। लॉर्ड कैनिंगको यह सब मालूम था । उन्होंने स्वर्गीया सम्राज्ञीको समय आनेपर उन करुण घटनाओंकी कहानियाँ भेजी थीं, जिनमें बताया गया था कि किस प्रकार ब्रिटिश भारतीयोंने अपने प्राणोंको जोखिममें डालकर सैकड़ों अंग्रेज पुरुषों और स्त्रियोंको बचाया था । अन्तमें जब विद्रोह बिलकुल दबा दिया गया और राजकीय कृपा प्रकट करनेका अवसर आया तब महारानीने अपने तत्कालीन प्रधानमन्त्री लॉर्ड डर्बीको आज्ञा दी कि वे राजकीय घोषणाका मसविदा बनायें। महारानीके स्वर्गीय पति महोदय उन समस्त वृत्तान्तोंको हमारे लिए सुरक्षित कर गये हैं, जिनका इस मसविदेसे सम्बन्ध था । उनके ग्रन्थमें हम पढ़ते हैं कि घोषणाका मसविदा सम्राज्ञीको पसन्द नहीं आया; क्योंकि उनकी दृष्टिमें वह अत्यन्त निस्तेज था । गदरके समय जो घटनाएँ भारतमें घटी थीं उनसे उसका मेल नहीं खाता था । इसलिए उन्होंने लॉर्ड डर्बीको दो बातोंपर जोर देते हुए नया मसविदा बनानेकी आज्ञा दी : एक, अपने उन करोड़ों राजनिष्ठ प्रजाजनोंसे, जो अभी-अभी भयंकर संकटसे गुजरे हैं, बात करनेवाली महारानी एक स्त्री हैं; और दूसरे, यह घोषणा भारतीय जनताके लिए स्वतन्त्रताका एक दस्तावेज होनी चाहिए, जिसकी वे कद्र करें और जिसे वे सुरक्षित रखें। इतना होनेपर वह मसविदा अपने वर्तमान रूपमें तैयार हुआ और जनताको भेजा गया। ऐसे अनेक अवसर आये जब कि उस घोषणाको भारतीयोंके लिए ब्रिटिश प्रजाके पूर्ण स्वत्व और अधिकार देनेवाली बताया गया । उनकी चर्चा करना व्यर्थ है । वाइसरायोंके बाद वाइसरायोंने उसी बातको दोहराया और लॉर्ड कर्ज़नने कलकत्ताकी विधान परिषदमें अपने आसनसे

  1. स्वाधीनताका महान अधिकार-पत्र जो ब्रिटिश प्रजाने सन् १२१५ में राजा जॉनसे बलपूर्वक प्राप्त किया था ।
  2. यह १८४८ के दूसरे सिख-युद्धकी बात है ।