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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसमें किये गये वादोंकी एकसे अधिक बार पुष्टि की। अन्तिम, पर उतनी ही महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमारे सम्राट्ने दिल्ली दरबारके अवसरपर वाइसरायको जो सन्देश भेजा था, उसमें भी बहुत कुछ यही कहा था ।

ब्रिटिश भारतीय कहीं भी क्यों न जायें, जब ब्रिटिश प्रजाजनके रूपमें उनकी स्वतन्त्रता और उनके अधिकारोंका हनन होता है तब वे उक्त घोषणाका आश्रय लेते हैं और यदि वे ऐसा करते हैं तो इसमें आश्चर्यकी क्या बात है ? घोषणाका मुख्य भाग हम नीचे उद्धृत करते हैं। पाठक देखेंगे कि इस घोषणामें जो वचन भारतीयोंको दिये गये हैं उनका उपभोग वे कहाँ कर सकेंगे, इस सम्बन्धमें किसी स्थानका प्रतिबन्ध नहीं है । यहाँ हमें इस बातकी तरफ विशेष रूपसे ध्यान इसलिए दिलाना पड़ा कि दक्षिण आफ्रिकामें इस घोषणाको यह कहकर टालनेके प्रयत्न किये गये हैं कि यह तो भारतमें की गई थी, इसलिए केवल वहीं लागू होती है। इस तर्कके विरुद्ध हम कह सकते हैं कि नेटालके भारतीयोंसे एक शिष्ट-मण्डलके उत्तरमें, इस घोषणाका जिक्र आनेपर तत्कालीन उपनिवेश मंत्री लॉर्ड रिपनने कहा था कि "सम्राज्ञीके भारतीय प्रजाजनोंको उपनिवेशोंमें भी वही अधिकार होंगे जो वहाँके उनके अन्य प्रजाजनोंको हैं ।"इस प्रकार समय और परिस्थितियोंने मिलकर इस घोषणाको एक पवित्र धरोहर बना दिया है। दूसरे लोग इसके विरुद्ध चाहे जो कहें, भारतीय जनताके लिए तो, चाहे वह कहीं भी जाकर बसे, जबतक ब्रिटिश साम्राज्य कायम है तबतक वह एक अत्यन्त प्रिय निधि बनी रहेगी । उपर्युक्त घोषणाके कुछ अंश ये हैं :

हम अपने-आपको अपने भारतीय प्रदेशके निवासियोंके प्रति कर्तव्यके उन्हीं दायित्वोंसे बँधा हुआ समझते हैं, जिनसे हम अपनी दूसरी प्रजाओंके प्रति बंधे हैं। और सर्वशक्तिमान परमात्माको कृपासे हम उन दायित्वोंका निष्ठापूर्वक और सदसद्विवेकबुद्धिके साथ निर्वाह करेंगे ।

और इसके अतिरिक्त हमारी यह भी इच्छा है कि हमारे प्रजाजन अपनी शिक्षा, योग्यता और ईमानदारीसे हमारी जिन नौकरियोंके कर्तव्य पूर्ण करनेके योग्य हों उनमें उन्हें जाति और धर्मके भेद-भावके बिना मुक्त रूप और निष्पक्ष भावसे सम्मिलित किया जाये ।

उनकी समृद्धिमें ही हमारी शक्ति होगी, उनके संतोषमें ही हमारी सुरक्षा होगी और उनकी कृतज्ञतामें ही हमारा सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार होगा। सर्वशक्तिमान प्रभु हमें तथा हमारे मातहत सभी अधिकारियोंको हमारे इन प्रजाजनोंके कल्याणके लिए इन कामनाओंको पूरी तरहसे कार्यान्वित करनेका बल प्रदान करे ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-७-१९०३