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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

साथ कहिए, काम करनेके लिए मजबूर किया जा सकता है; परन्तु बादमें यह कुछ नहीं होगा । तब यह कहा जायेगा कि यहाँके निवासियोंसे जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। आफ्रिकावासियोंका जीवन बहुत सादा है। अपनी जरूरतोंके लायक तो उन्हें हमेशा मिल जायेगा । परन्तु इसका परिणाम यह होगा कि उनकी प्रगतिमें एक अनिश्चित कालके लिए भारी रुकावट आ जायेगी । हमने इनके बारेमें सौम्यताके साथ मजबूर करनेकी बात अच्छे अर्थमें ही कही है; हमारा मतलब उस तरह मजबूर करनेका है, जैसे कि माता-पिता अपने बच्चोंको करते हैं।

परन्तु स्वयं एशियाइयोंका क्या हो ? यूरोपीय जातियोंकी तरफसे पेश समूची दलीलका उद्गम एक ही दृष्टिकोण है । अगर कहीं गुलामीकी प्रथा पुनः लौटाई जा सकती तो हमें आशंका है, एशियासे मजदूर लानेके विरुद्ध बहुत-सा आन्दोलन शान्त हो जाता । लोग एशियासे मजदूरोंको बुलानेपर राजी हो जाते, अगर उनको पूरी तरह यह भरोसा हो सकता कि ये मजदूर सदा मजदूर ही बने रहेंगे और इकरारनामेकी अवधि समाप्त होते ही उन्हें वापस उनके देश भेज दिया जायेगा । परन्तु भारतीयोंकी दृष्टिसे, और वास्तवमें नैतिक दृष्टिसे, हमें ऐसी साँठ-गाँठको अपवित्र माननेमें कोई संकोच नहीं है। अगर उपनिवेशको एशियाई मजदूरोंकी जरूरत है तो उसे उनको यहाँ लानेका अशेष परिणाम सहना होगा और उन मजदूरोंको साधारण मानवोचित स्वतन्त्रता देनेके लिए तैयार रहना होगा। स्पष्ट है कि ट्रान्सवालमें इसे स्वीकार करनेका प्रश्न ही नहीं है । इसलिए एशियासे यहाँ मजदूरोंका लाना खुद मजदूरोंके लिए अन्यायपूर्ण और मालिकों को गिरानेवाला होगा । हमने पहले कहा है कि केवल नेटालमें ही नहीं, समस्त दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके प्रश्नके जटिल बन जानेका मुख्य कारण यहाँ भारतीय मजदूरोंका लाया जाना है। आज भी हमारी वही राय है । और हमारी दृष्टिमें इस प्रश्नको हल करनेका भी एकमात्र उपाय एशियाई मजदूरोंको लानेमें सहायता देना बन्द करके उनके स्थानपर समस्त दक्षिण आफ्रिकामें गोरोंको लानेमें मदद करना है। साथ ही कुछ नियन्त्रणके साथ सब वर्गके लोगोंके लिए भी द्वार खुला रहे। इससे सन्तुलन अपने आप ठीक हो जायेगा । फिर भारतीय व्यापारियोंके या उनके किसी सामान्य उद्यमके प्रति शायद ही कोई विरोध रह जायेगा ।

इस तरह हर दृष्टिसे देखनेपर इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जहाँतक मजदूरोंका प्रश्न है, यूरोपीयों और भारतीयोंकी रायमें ऐकमत्य है । हम हृदयसे आशा करते हैं कि एशियासे ट्रान्सवालमें मजदूरोंको लानेका कभी प्रयत्न नहीं किया जायेगा । {{left|[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-७-१९०३