पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/४२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२७२. प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयक

हमने हालके एक अंकमें भारतीय समाजकी ओरसे विधानसभाके नाम श्री अब्दुल कादिर आदिकी एक अर्जी छापी है। उसमें शैक्षणिक कसौटीके लिए मुख्य भारतीय भाषाओंको भी स्वीकार करनेकी उपयोगितापर बहुत जोर दिया गया है। वे भाषाएँ अच्छी विकसित तो हैं ही। उनका साहित्य भी विशाल है और भारतमें सम्राट्के करोड़ों वफादार प्रजाजन उनका व्यवहार करते हैं । जैसा कि अर्जदारोंने कहा है, उन महान भारतीय भाषाओंको मान्यता देनेपर भी ऐसे करोड़ों अपढ़ भारतीय रह् जायेंगे जो विधेयकके अनुसार यहाँ बिलकुल प्रवेश नहीं पा सकेंगे। चूँकि बहुत थोड़ा मौका देकर ही वर्तमान प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियमके स्थानपर हुकूमतने एक नया प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयक पेश करनेमें आगा-पीछा नहीं किया है, इसलिए हमारा खयाल है कि भारतीय समाजकी यह छोटी-सी माँग मान लेनेमें कोई खतरा नहीं है; क्योंकि अगर नई कसौटीका अनुमानसे अधिक भारतीयों को ऐसा लाभ मिलता दिखे कि उपनिवेशियोंमें 'घबराहट' पैदा हो जाये, तो इसपर पुन: विचार किया जा सकता है । परन्तु हमें तो निश्चय है कि इसकी जरा भी जरूरत नहीं होगी। हाँ, उपनिवेशवासी भारतीयोंके स्वतंत्र प्रवेशको पूरी तरह रोक देना चाहते हों तो बात दूसरी है ।

अर्जीमें कुछ और बातें भी कही गई हैं। वे भी हुकूमतके ध्यान देने योग्य हैं। अगर हुकूमतकी नीति दक्षिण आफ्रिकाके प्रवासियों-सम्बन्धी कानूनको ग्रहण कर लेनेकी है तो, जैसा कि अर्जदारोंने चाहा है, केवल नेटालमें ही नहीं, समस्त दक्षिण आफ्रिकामें बसे भारतीयोंको अधिवासका विशेषाधिकार दिया जाये। एक ही झंडेके नीचे रहनेवालोंके बीच एकता बढ़ानेकी खातिर हुकूमतको कुछ-न-कुछ तो मानना ही चाहिए। अगर दक्षिण आफ्रिकामें विदेशी राज्य होते तो बात अलग थी। परन्तु चूँकि उसके सारे राज्य अब ब्रिटिश उपनिवेश बन गये हैं, यहाँ भेदभाव बरतनेसे मनोमालिन्य पैदा हो सकता है । हमारा मत है कि दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश उपनिवेशोंमें समस्त प्रजाजनोंको हर जगह आने-जानेकी पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए। उपनिवेशके राजनीतिज्ञोंने ऐसे भाव कई बार प्रकट भी किये हैं । नेटालके विधेयकको केपके कानूनके स्तरपर लानेके लिए यह अवसर अत्यन्त उपयुक्त है ।

निवासकी अवधि दो वर्षसे बढ़ाकर विधेयकमें तीन वर्ष कर देना बेशक शिकायतका सबब है। अर्जदारोंने इसका विरोध करके ठीक ही किया है। हमारा खयाल है कि पुराने निवासी होनेके लिए मनमाने ढंगपर दो वर्षका समय निश्चित करना भी अन्यायपूर्ण समझा गया था। परन्तु दो वर्षसे तीन करनेके कारण तो उन सैकड़ों भारतीयोंके लिए उपनिवेशके दरवाजे बन्द ही हो जायेंगे, जिन्होंने नेटालको लगभग अपना घर बना लिया है और जो अपनी आजीविकाके लिए उसीपर निर्भर हैं ।

इसलिए हम आशा करते हैं कि अर्जदारोंकी इन वाजिब माँगोंपर हुकूमत विचार करेगी और उक्त रियायतें दे देगी। हमें कोई सन्देह नहीं है कि भारतीय समाज इसकी बहुत कद्र करेगा । इस प्रसंगपर हम माननीय सर जॉन रॉबिन्सनके उस ओजस्वी भाषणका उल्लेख करना चाहते हैं जो उन्होंने मताधिकार सम्बन्धी विधेयक प्रस्तुत करते समय दिया था। वे उस समय इस उपनिवेशके प्रधानमंत्री थे। उस भाषणमें उन्होंने कहा था कि भारतीयोंके मताधिकारको छीनकर सदन एक गंभीर जिम्मेदारी अपने सरपर ले रहा है। भारतीयोंको मताधिकारसे वंचित