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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

करके उनका प्रतिनिधित्व करनेकी जिम्मेदारी इस सदनके प्रत्येक माननीय सदस्यपर अपने आप आ जाती है; अर्थात् प्रत्येक सदस्यको यह ध्यान रखना होगा कि भारतीयोंके साथ कहीं भी अन्याय न होने पाये और जहाँतक सम्भव हो, उनकी भावनाओंका पूरा आदर होता रहे। प्रवासी-कानूनपर जो विचार हो रहा है उसके परिणामकी प्रतीक्षा हम बहुत उत्सुकताके साथ करेंगे । क्या सर जॉनके वचनोंपर विधानसभा अमल करेगी ? हम आशा तो करें।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-७-१९०३


२७३. प्लेग

डर्बन प्लेगसे मुक्त घोषित कर दिया गया, यह बधाईकी बात है । इस उपनिवेशसे ट्रान्सवाल जानेवाले भारतीयोंपर प्लेगके दिनोंमें जो बहुत कड़ी रोक लगा दी गई थी, उसकी चर्चा हम इन स्तम्भोंमें कर चुके हैं। हमें ज्ञात हुआ है कि यह रोक अभीतक कायम है। इसका कारण समझना सचमुच बहुत कठिन है । हमारा मत बराबर यह रहा है कि यह रोगकी रोक-थाम कम, राजनीतिक चाल अधिक थी; और अब, उपनिवेशके प्लेगसे बिलकुल मुक्त घोषित कर दिये जानेपर भी, यदि रुकावट नहीं हटाई जाती तो इसे सर्वथा अनुचित -- केवल एक जबरदस्त अन्याय -- कहना पड़ेगा । हम जानते हैं कि सैकड़ों शरणार्थी यह राह देख रहे हैं कि कब रोक उठे और कब वे ट्रान्सवालमें लौटकर अपने अपने रोजगारको सँभाल लें । स्मरण रहे कि लड़ाईके दिनोंमें जब शरणार्थियोंको सरकारकी तरफसे राहत दी जा रही थी, भारतीय शरणार्थियोंका सारा खर्च भारतीय समाजने अपने ऊपर ले लिया था। इनमें से कुछ शरणार्थी अभी डर्बनमें ही हैं और यद्यपि अब उनका खर्च समाज अपने सार्वजनिक कोशसे नहीं दे रहा है तथापि इनके निवास और भोजनकी व्यवस्था मित्रों और रिश्तेदारोंकी मददसे ही की जा रही है। हम ट्रान्सवालके अधिकारियोंसे अनुरोध करना चाहते हैं कि वे रुकावटको हटाकर इनके कष्टोंको दूर करें और ट्रान्सवालमें इनके लौट जानेके लिए आवश्यक सुविधाएँ कर देनेकी कृपा करें ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-७-१९०३