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९. पत्र:औपनिवेशिक साचिवको
५३-सी, फील्ड स्ट्रीट
 
डर्बन
 
जुलाई २१, १८९८
 

सेवामें

माननीय औपनिवेशिक सचिव

पी० मै० बर्ग'

महोदय,

मैंने डर्बनके प्रवासी-अधिकारीको अमुक चार भारतीयोंके लिए अस्थायी परवानोंकी अर्जी दी थी। वे हरएक व्यक्तिके २५-२५ पौंड जमा करनेपर परवाने देनेको तैयार है। मेरे यह अर्जी देनेपर कि हर व्यक्ति से १०-१० पौंड जमा कराये जायें, उन्होंने मुझे सूचित किया है कि उन्हें ऐसी छोटी रकमें मंजूर करनेका अधिकार नहीं है।

मैं आपका ध्यान इस हकीकतकी ओर खींचना चाहता हूँ कि चार्ल्सटाउनमें १० पौंडकी रकम स्वीकार की जाती है। रकम जमा कराने की प्रणाली बहुत बड़े सन्तापका मूल है, और मैं निवेदन करता हूँ कि रकम जमा करानेका मंशा पूरा करनेके लिए १० पौंड बहुत काफी हैं।

अगर अस्थायी परवाने रखनेवालोंकी जमा-रकम जब्त हो जाये, तो भी कानून तो उन तक पहुँच ही सकता है और उन्हें उपनिवेशसे निर्वासित किया जा सकता है। ऐसी स्थितिमें, मुझे भरोसा है, आप डर्बनके प्रवासी-अधिकारीको अधिकार दे देंगे कि वे अस्थायी परवाना माँगनेवाले हर व्यक्तिसे १० पौंडकी रकम जमा कराना मंजूर कर लें।

आपका आज्ञाकारी सेवक,
 
मो० क० गांधी
 

हाथसे लिखे हुए मूल अंग्रेजी पत्रसे, जिसपर गांधीजीके हस्ताक्षर हैं; पीटरमैरित्सबर्ग आर्काइव्ज, नं० सी० एस० ओ०/४७९९/९८ ।



१. पीटरमरित्सबर्ग।

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