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२७४. खास वकालत

एशियाइयोंको अलग बसानेका प्रस्ताव करनेवाली 'मेयरकी तजवीज़[१]' अबतक काफी मशहूर हो चुकी है। हमारे सहयोगी नेटाल ऐडवर्टाइज़रने उसकी हिमायतमें कुछ खास वकालत की है । "हिफाजत लोगोंका सबसे बड़ा कायदा (सेलस पापुली सुप्रीमा लेक्स) इस कहावतको उसने पृथक्करणका आधार बनाना चाहा है। मगर हमें "लोगों" (पापुली) के पहले "यूरोपीय" ( यूरोपियनी) नहीं दिखता। इसलिए हम सोचते हैं कि आखिरकार भारतीय भी चूंकि आदमी है, वह भी “लोगों" के दायरेमें आता है । अगर ऐसा है तो फिर सब लोगोंकी हिफाजतका सबसे बड़ा कायदा कौनसा है ? निस्सन्देह वह कायदा उनमें से कुछको पतित करके भेड़-बकरियोंकी तरह बहिष्कृत बस्तियों या पशुओंके बाड़ोंमें ढकेल देना नहीं है। हमारा सहयोगी आगे लिखता है : "अनुभव बतलाता है कि इन दोनों जातियोंका बेरोकटोक मिश्रण यूरोपीय लोगोंकी बड़ीसे-बड़ी भलाईका कारण नहीं बनता।" मगर अपनी इस बातको साबित करनेवाला एक भी तथ्य हमारे सहयोगीने नहीं दिया । तथ्य यह है कि भारतीयोंने नेटालको दक्षिण आफ्रिकाका उद्यान बना दिया है। उन्हें सरकारी तौरपर “शराबसे परहेज करनेवाले, उपयोगी और कानूनका पालन करनेवाले नागरिक” बताया गया है। ऐसे लोग जहाँ बसते हैं उस मुल्कको अगर नुकसान पहुँचाते हैं तो यह आश्चर्यकी बात है । हमारे सहयोगीने "मिश्रण” शब्दका प्रयोग किया है। सच तो यह है कि रोजगारको छोड़कर और किन्हीं बातोंमें इन दोनों कौमोंका मिश्रण होता ही नहीं है । और हमें भरोसा है कि भारतीय चाहे अलग बसाये जायें चाहे नहीं, यह मिश्रण तबतक चलता रहेगा जबतक हमारे यूरोपीय मित्र उनके साथ रोजगार करना चाहते हैं, या उनकी सेवाओंका फायदा उठाना चाहते हैं। रोजगारके सिलसिलेमें मिश्रणकी बातको छोड़ दें तो फिर भारतीय बस्ती इस समय जबरदस्ती न सही, प्रायः खास हिस्सोंमें होती है। उपनिवेशमें सबसे बड़े अंग्रेज हैं और रहेंगे। हम यह नहीं कहते कि वे अपनी भलाईका सारा खयाल छोड़कर हमारे लिए जियें-मरें । मगर हमारी उनसे इतनी विनती जरूर है कि वे अपने बड़प्पनका उपयोग हमारे साथ अन्याय करने, हमें गिराने या हमारा अपमान करनेमें न करें । "नपा-तुला हक, दया नहीं" -- यह भारतीयोंकी सही और उचित माँग है । हमारा सहयोगी बेशक एक करिश्मा कर दिखाता है, जब कि वह भारतीयोंकी आम सभामें दिये गये भाषणोंमें कोई भी ऐसी चीज़ देखनेसे इनकार करता है जो उसे कायल कर सके कि " मेयरके प्रस्तावोंको कार्यान्वित करनेसे कोई बुनियादी अन्याय होगा । अस्तु, जो आदमी मानना नहीं चाहता उससे कुछ मनवाया नहीं जा सकता, नहीं तो हम अपने सहयोगीसे पूछते कि क्या निरपराध लोगोंके किसी समूहकी व्यक्तिगत आजादीपर पाबन्दी लगाना अन्याय नहीं है -- अन्याय शब्दका ब्रिटिश संविधानमें जो अर्थ है उसके मुताबिक ? हमारे सहयोगीको दुःख है कि उपनिवेशमें भारतीयोंकी तादाद यूरोपीयोंके बराबर है । हम उसे याद दिलाना चाहते हैं कि ५०,००० भारतीयोंमें से लगभग आधे तो अपने गिरमिटोंकी मियाद काट रहे हैं और इसलिए, बहसकी हृदतक, उन्हें इस तुलनामें शामिल नहीं करना चाहिए। फिर भी, तथ्य तो यह है -- भारतीय मजदूरोंका आयात बन्द कीजिए, और समस्या सुलझी सुलझाई है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-७-१९०३
  1. देखिए, "मेयर की तजवीज," जून ४, १९०३ ।