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२७५. प्रार्थना-पत्र: नेटाल विधानपरिषदको

डर्बन
जुलाई ११, १९०३

सेवामें

माननीय अध्यक्ष तथा सदस्यगण

विधानपरिषद, नेटाल

नेटाल उपनिवेशवासी ब्रिटिश भारतीयोंके निम्न
हस्ताक्षरकर्ता प्रतिनिधियोंका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि,

आपके प्रार्थी प्रवासियोंपर और कठिन प्रतिबन्ध लगानेवाले विधेयकके सिलसिलेमें विनयपूर्वक इस माननीय सदनके सामने उपस्थित हो रहे हैं । उक्त विधेयक माननीय सदनके विचाराधीन है ।

अब्दुल कादिर और दूसरे एक सौ छियालीस व्यक्तियोंके हस्ताक्षरोंसे जो प्रार्थनापत्र नेटालमें रहनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंकी ओरसे माननीया विधानपरिषदको दिया गया था, प्रार्थीगण उसकी एक प्रति सेवामें पेश करते हैं । प्रार्थनापत्र इस तरह है[१] :

प्राथियोंको आशा है कि सदन प्रार्थनापत्रमें दिये गये सुझावोंपर अनुकूल विचार करेगा । न्याय और दयाके इस कार्यके लिए प्रार्थी, कर्तव्य समझकर, सदा दुआ करेंगे।

(हस्ताक्षर ) डी० एम० मताला
और उन्तीस अन्य

[ अंग्रेजीसे ]

कॉलोनियल ऑफ़िस रेकर्ड्स मेमोरियल्स ऐंड पिटिशन्स,१९०३; सी० ओ० १८१, जिल्द ५३, वोटस ऐंड प्रोसीडिंग्ज़ ऑफ़ द नेटाल पार्लमेंट।

२७६. ऑरेंज रिवर उपनिवेश

महमूद गजनवीने जब भारतके कुछ भागोंको जीत लिया उसके कुछ समय बाद उसके भारतीय राज्यकी एक गरीब विधवा, जिसे उसके सरदारोंसे न्याय नहीं मिल सका था, पैदल चलकर गज़नी पहुँची और उसने बादशाहके सामने अपनी शिकायतोंको रखा। कहा जाता है, महमूदने जवाब दिया कि मैं तेरे लिए कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि मेरे राज्यके प्रदेश राजधानीसे बहुत दूर हैं । विधवाने तुरन्त ही जवाब दिया: हुजूर, अगर आप भारतमें रहनेवाले अपने प्रजाजनोंकी रक्षा नहीं कर सकते तो वहाँ आपको राज करनेका कोई हक नहीं है । "कहानी पुरानी और प्रसिद्ध है, और एक शिक्षा देती है, जो आजकी परिस्थितिमें दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीयोंके लिए बड़ा महत्त्व रखती है। आज उनकी हालत उसी गरीब विधवाके समान है, और वे सम्राट्से वही शिकायतें कर सकते हैं। हम जानते हैं, उन्हें बादशाहसे वह जवाब नहीं मिलेगा, जो महमूदने उस विधवाको दिया था। फिर भी, अबतक वह निराशाजनक

  1. यहाँ अर्जदारोंने जून २३ का प्रार्थनापत्र उद्धृत किया था; देखिए प्रवासी-विधेयक, जून २५, १९०३ ।