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मजदूर आयातक संघ

अर्थ समझते हैं तो उसमें एक मनुष्य दूसरे मनुष्यको अपनी सेवाएँ जीवन-भरके लिए इस तरह बेच देता है कि उससे कभी उसे छुटकारा नहीं मिल सकता और जिससे छुटकारेकी थोड़ी-सी भी कोशिश कारावासके योग्य अपराध होता है । अगर गुलामीका यही सही अर्थ है, तो श्री गॉशके साथी जो चाहते हैं वह एक निश्चित अवधिकी गुलामीके अलावा और कुछ नहीं है, क्योंकि वे चाहते हैं कि एक मजदूर पाँच सालके लिए अपनी सेवाएँ बेच दे, वह केवल एक सादे मजदूरका काम करे और "हर मालिक मजदूरोंको अपने देश वापस भेजनेकी सरकारके सन्तोषके योग्य गारंटी दे," मजदूर निश्चित अहातेके अन्दर ही रखा जाये और इस शर्तबन्दीके कानूनको भंग करनेकी सजा कड़ी हो।

अगर यह अस्थायी गुलामी नहीं है, तो हम जानना चाहते हैं कि फिर गुलामी क्या है ? नौकरीके मामूली इकरारनामे और इस शर्तनामेके बीच फर्क यह है कि मामूली इकरारनामेके अनुसार अगर मनुष्य नौकरी छोड़ना चाहे, तो हरजानेकी रकम अदा करके छुट्टी पा सकता है और नौकरीमें टाल-मटोल कोई कानूनी गुनाह नहीं मानी जाती। किन्तु इनके बताये शर्तनामेमें एक बार बँध जानेके बाद मजदूर बीचमें छूट ही नहीं सकता और शर्तका जरा भी भंग हुआ, तो वह कानूनी अपराध बन जाता है। इसलिए प्रश्न बिलकुल साफ है । क्या ट्रान्सवालकी साधन-सम्पत्तिका विकास करनेके लिए भारत या दूसरे देशोंके श्रमका शोषण किया जायेगा, और जिनके श्रमसे लाभ उठाया जाये उनके अधिकारोंको माने बिना ? मजदूरी कितनी भी हो और मजदूर उसे लाचारीमें स्वीकार भी क्यों न कर ले, हमारी समझमें वह मजदूरके लिए बाजार-दरपर अपनी सेवाएँ बेच देनेका, या गिरमिटकी अवधिमें उसे जो नुकसान हुआ हो, बादमें उसकी पूर्ति करनेका सन्तोषजनक मुआवजा नहीं हो सकता। स्वर्गीय श्री विलियम विल्सन हंटरने ऐसी पद्धतिको "भयंकर रूपमें गुलामीकी-सी पद्धति" कहा था । नेटालमें जब ऐसा ही प्रस्ताव हुआ था, तब परम माननीय हैरी एस्कम्बने जो राय दी उसे हम यहाँ उद्धृत करते हैं। कुछ वर्ष पहले इस सिलसिले में जो आयोग नियुक्त किया गया था, उसके सामने उन्होंने ये शब्द कहे थे :

एक आदमी यहाँ लाया जाता है। सिद्धान्ततः रजामंदीसे, व्यवहारतः बहुधा बिना रजामंदी लाया जाता है। वह अपने जीवनके सर्वश्रेष्ठ पाँच वर्ष यहाँ खपा देता है। नये सम्बन्ध स्थापित करता है। शायद पुराने सम्बन्धोंको भुला देता है। यहाँ अपना घर बसा लेता है । ऐसी हालतमें मेरे न्याय और अन्यायके विचारसे, उसे वापिस नहीं भेजा जा सकता। भारतीयोंसे जो कुछ काम आप ले सकते हैं वह लेकर उन्हें चले जानेका आदेश दें, इससे तो यह कहीं अच्छा होगा कि आप उनको यहाँ लाना हो बिलकुल बन्द कर दें। ऐसा दीखता है कि उपनिवेश या उपनिवेशका एक भाग भारतीयोंको बुलाना तो चाहता है, परन्तु उनके आगमनके परिणामोंसे बचना चाहता है । जहाँतक मैं जानता हूँ, भारतीय हानि पहुँचानेवाले लोग नहीं हैं। कुछ बाबतोंमें तो वे बहुत परोपकारी हैं। फिर, ऐसा कोई कारण तो मेरे सुननेमें कभी नहीं आया, जिससे किसी व्यक्तिको पाँच वर्ष तक चाल-चलन अच्छा रखनेपर भी देश निकाला दे दिया जाये, और इस कार्यको उचित ठहराया जा सके। मैं नहीं समझता कि किसी भारतीयको, उसकी पाँच वर्षकी सेवा समाप्त होनेपर पुलिसकी निगरानी में रखना चाहिए ।