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२७९. केपमें भारतीय 'बाजार'को तजवीज

केपटाउनके नगर-निगम (कारपोरेशन)के गैर-सरकारी विधेयककी उस उपधाराकी नकल अब हम पाठकोंतक पहुँचा पा रहे हैं, जिसे वह केपकी संसदमें मंजूर कराना चाहता है । उपधारामें कारपोरेशनके लिए यह सत्ता माँगी गई है कि वह भारतीयों अथवा एशियाइयोंके लिए शहरकी सीमाके अन्दर या बाहर बाजार या बस्तियाँ बनाये रखे तथा नियन्त्रित करे और यदि शहरके स्वास्थ्य अधिकारी उनकी आदतों, रहन-सहन अथवा आबादीके घनेपनके कारण उनका सर्व-साधारणके साथ रहना जन-साधारणके स्वास्थ्यके लिए हानिकर बतायें तो कारपोरेशन उनको इन बस्तियोंमें चले जानेके लिए मजबूर करे और इन बस्तियों या बाजारोंमें जगह उपयोगके लिए उनसे किराया वसूल करे ।

तिरछे अक्षरोंमें दिया हुआ भाग उपधाराके विरोधमें पेश की गई दलीलोंको काटनेके खयालसे परिषदके सलाहकारोंने संशोधनके रूपमें बादमें जोड़ा है ।

प्रस्तावित संशोधनमें यद्यपि भारतीयोंकी रायका आदर करनेकी इच्छा प्रकट होती है, तथापि वह जरूरतोंकी पूर्ति नहीं करता । निःसन्देह उसका मसविदा अत्यन्त चतुराईके साथ बनाया गया है । परन्तु उससे किसीको धोखा नहीं हो सकता। क्योंकि अगर उन लोगोंके रहन-सहनमें कोई आपत्तिजनक बात दिखाई देती है, या ऐसा लगता है कि बस्ती अधिक घनी हो गई है तो इसका उपाय यह नहीं है कि उनको वहाँसे हटाकर अलग बसनेके लिए मजबूर किया जाये और उनकी आदतें वैसी ही बनी रहने दी जायें। उपाय यह है कि उनपर अधिक ध्यान देकर उनकी वे आदतें दूर करनेका यत्न किया जाये और सफाईके नियमोंका उल्लंघन करनेपर जहाँ जरूरत समझी जाये लोगोंको सजा दी जाये। संशोधनके सिवा आश्चर्य और ध्यान देने योग्य बात यह है कि ब्रिटिश भारतीयोंकी आजादी छीननेके सम्बन्धमें जितने भी प्रस्ताव सामने आते हैं, पहलेसे दूसरा "एक कदम आगे" होता है । सबसे पहला प्रसिद्ध बाजार-प्रस्ताव[१] ट्रान्सवालमें आया । उसमें बस्तियाँ शहरकी सीमाके अन्दर ही बनानेका जिक्र है । केपकी नगर परिषदका प्रस्ताव उससे बढ़कर है। वह शहरकी सीमाके अन्दर या बाहर बस्ती बनानेका अधिकार चाहता है । किन्तु सर पीटर फॉरने मेयरोंके शिष्ट-मण्डलको जो जवाब दिया है उससे तो ऐसा लगता है कि केपकी हदतक अब बाजारोंकी बात खत्म हो गई। फिर भी अपने केप-निवासी देशभाइयोंको हम चेतावनी दे देना चाहते हैं कि वे सचेत रहें और आबादीके घनेपन या सफाईके बारेमें शिकायत के लिए रत्तीभर भी मौका न दें। चूँकि ब्रिटिश भारतीयोंके प्रत्येक कार्यको बहुत ही सतर्कतासे देखा जा रहा है यह उनका पहला कर्तव्य है कि वे कहीं भी किसीको विरोधका मौका न दें ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-७-१९०३
  1. देखिए, “दक्षिण आफ्रिका के भारतीय,” अप्रैल १२, १९०३ का सहपत्र।