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२८१. ट्रान्सवालकी स्थितिपर

जोहानिसबर्ग
जुलाई १८, १९०३

विधान परिषदने नगरपालिकाके चुनावोंको विनियमित करनेके लिए एक अध्यादेश पास किया है । सरकारने अपने मसविदेमें, रंग या जातिके भेद-भावके बिना, सबके लिए मताधिकार रखा था । शर्त यह थी कि उनके पास कुछ निश्चित जायदाद हो और वे अंग्रेजी या डच भाषाकी एक शैक्षणिक जाँचमें उत्तीर्ण हो सकें। दूसरे वाचनके वक्त एकको छोड़कर अन्य सारे गैर-सरकारी सदस्योंने सरकारका विरोध किया। इसपर सरकार बहुमत रखते हुए भी विरोधी-दलकी इच्छाके आगे झुक गई।

इसलिए अब अध्यादेश म्यूनिसिपल चुनावमें मतका हक श्वेत ब्रिटिश-प्रजा तक महदूद करता है ।

जैसे ही सरकारने विरोधी दलकी इच्छाके आगे झुकनेका इरादा जाहिर किया वैसे ही सम्मानके साथ उसके विरोधमें प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किया गया, किन्तु उसका कोई नतीजा नहीं निकला ।

अब लॉर्ड मिलनरने अध्यादेशपर अपनी स्वीकृति दे दी है ।

अगर लड़ाईके समय उत्पन्न की गई आशाओंके अनुरूप ब्रिटिश भारतीयोंके साथ न्यायोचित बरतावकी कोशिश की गई तो गैर-सरकारी सदस्य एकमत होकर उसका विरोध करेंगे और तब सरकारका रुख क्या होगा, यह सम्भवतः इस बातसे जाहिर हो गया है।

यहाँ यह उल्लेख कर दें कि केप और नेटालमें -- यद्यपि वे स्वशासित उपनिवेश हैं -- भारतीयोंको नगरपालिका-मताधिकार प्राप्त है ।

अभी-अभी सरकारने अनैतिकताको दबानेके लिए एक अध्यादेशका मसविदा विधान परिषदमें रखा है । मसविदेके सिद्धान्तसे मतभेदकी कोई बात नहीं है, किंतु उसमें एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत अटका हुआ है । उक्त अध्यादेशमें कुछ कृत्य गंभीर अपराध माने गये हैं, "अगर भी वतनी" उन्हें करे । और धारा १९ की उपधारा ५ "वतनी" कोई (नेटिव)की परिभाषा इस तरह करती है, “व्यक्ति, जो आफ्रिका, एशिया, अमेरिका या सेंट हेलेनाकी किसी आदिमजाति या रंगदार कौमका दिखे ।"

ब्रिटिश भारतीय उपनियममें सूचित कृत्योंको अपनी हदतक भी निस्संदेह अपराध मानने को तैयार हैं; परन्तु उन्हें अपनेको आफ्रिका, अमेरिका और सेंट हेलेनाके आदिवासियोंके साथ कोष्ठकमें रखे जानेसे विरोध है। डंक इस कामके तरीकेमें है । परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नरके पास यह बात पेश की गई थी। उन्होंने यह उत्तर दिया है :

परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नरने इस बातपर बहुत गौरसे सोचा है और संघकी इच्छाओंको पूरा करनेकी कोशिश की है। फिर भी मुझे यह सूचित करना है कि जिस उपनियमकी शिकायत की गई है अब उसके बारेमें कुछ कर सकना मुमकिन नहीं है । और यह कि, ये शब्द दूसरे उपनिवेशोंके ऐसे निकायोंके ऐसे ही उपनियमोंसे लिये गये हैं । परमश्रेष्ठको आशा है कि आप जिस अर्थमें शब्दोंका उपयोग किया गया है उसी अर्थमें