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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

उन्हें लेंगे । और यह कि, उनका मंशा जैसा कि आपने सुझाया है, ब्रिटिश भारतीय प्रजाको किसीके साथ कोष्ठकमें रखना नहीं है।

उत्तर सहानुभूतिपूर्ण है। मगर इससे मुश्किल हल नहीं होती। तारीख इसपर ४ जुलाई पड़ी है । तब अध्यादेशका पहला वाचन ही हुआ था । इसलिए यह मुश्किलसे समझमें आता है कि क्योंकर समितिके स्तरपर शब्दावलीमें परिवर्तन नहीं किया जा सका। उसके बाद पूछताछ की गई है और मालूम यह हुआ है कि विषयसे संबंधित केप या नेटालके विधानोंमें ऐसी कोई आपत्तिजनक परिभाषा नहीं है; वास्तवमें दोनों जगहोंमें से कहींका भी ऐसा कानून ब्रिटिश भारतीयोंपर लागू नहीं है। इसलिए परमश्रेष्ठ गवर्नर लॉर्ड मिलनरको भी एक संक्षिप्त विरोध-पत्र[१] भेजा गया है। फल अभी तक मालूम नहीं हुआ है ।

उपनिवेश सचिवने इस हफ्ते घोषणा की है कि सरकार ८,००० पौंडकी रकमका एक बड़ा भाग ब्रिटिश भारतीयोंके लिए निर्दिष्ट बस्तियाँ बनानेमें खर्च करनेका विचार कर रही है । इन स्थानोंमें कोई १०,००० मनुष्य बस सकेंगे जिनमें से ८,००० प्रिटोरिया और जोहानिसबर्गके ही होंगे। विचार ५४ बस्तियाँ बसानेका है ।

यह बड़ी गंभीर बात है । यदि श्री चेम्बरलेन अभीतक इस बातपर विचार कर रहे हैं कि कानूनोंके परिवर्तन की दिशा क्या होगी तो समझमें नहीं आता कि बस्तियाँ बनानेकी यह हड़बड़ी क्यों -- जहाँ मुश्किलसे बीस या तीस भारतीय हैं वहाँ भी । लेकिन पॉचेफस्ट्रमसे तो और भी गम्भीर समाचार मिला है कि वहां फेरीवालोंको "बस्तियों" में हटनेपर लाचार करनेवाली कार्रवाईतक शुरू हो गई है। खयाल यह था कि जबतक सारेके सारे विधानपर विचार नहीं हो चुकता कोई सख्त कदम नहीं उठाये जायेंगे। आजके पहले 'बस्तियों' को लेकर कभी अदालती कार्रवाई नहीं की गई । १८९९ में जब अनिवार्य स्थानान्तरकी कार्रवाई शुरू होनेवाली थी तब ब्रिटिश एजेंटने हस्तक्षेप करके इस धमकीको अंजाम देनेसे भूतपूर्व गणराज्य सरकारको सफलतापूर्वक विरत किया था । {{left[ अंग्रेजीसे ]}} इंडिया ऑफ़िस : ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, ४०२ ।

  1. इसका मूल पाठ प्राप्त नहीं है ।