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२८२. मुकदमेका सार: वकीलकी रायके लिए

[ जोहानिसबर्ग ]
जुलाई २१, १९०३

पिछले साल कुछ ब्रिटिश भारतीयोंने मेसर्स पी० आम ऐंड संससे ईडेनडेल एस्टेट कही जानेवाली एक जायदादमें कुछ बाड़े (स्टैंड) नीलाममें खरीदे । १८८५ का कानून ३ अपने १८८६ के संशोधित रूपमें लागू है और उसके मातहत सरकार द्वारा अलगाये हुए कूचों, मुहल्लों और बस्तियोंको छोड़कर कहीं भी ब्रिटिश भारतीय किसी स्थावर सम्पत्तिके मालिक नहीं हो सकते, जान पड़ता है इस बातकी न नीलाम करनेवालेको खबर थी न खरीदनेवालेको ।

खरीदनेकी कीमत व्याज समेत चुका दी गई है।

वकीलोंने जायदादके तबादलेके कागजात बनाये और तब उन्हें पता चला कि जायदादके तबादलेका पंजीकरण (रजिस्ट्री) खरीदारके नाम नहीं हो सकता ।

वकीलके तय करनेके प्रश्न ये हैं :

(१) क्या खरीदार बेचनेवालोंको उक्त जायदाद फिरसे नीलाम करनेपर मजबूर कर सकते हैं और बिक्रीसे अगर कुछ ज्यादा दाम आएँ तो उसका फायदा उठा सकते हैं ?

(२) यदि नहीं, तो क्या खरीदारोंको बेचनेवालोंसे सौदा तोड़नेके हर्जानेकी तरह कुछ मिल सकता है -- अगर उनकी कब्जा न देनेकी कानूनी लाचारी सौदा तोड़ना हो ।

(३) अगर हर्जाना वसूल नहीं किया जा सकता तो क्या बेचनेवालोंसे रकम चालू दरपर ब्याज समेत नहीं ली जा सकती -- क्योंकि बेचनेवालोंने रकमका उपयोग किया है ?

(४) साधारण तौरपर इन परिस्थितियोंमें वकील खरीदारोंको क्या सलाह देंगे ?

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

साबरमती संग्रहालय; एस. एन. ४०६८।


२८३. पेशगी कानून

ईस्ट लंदनमें ब्रिटिश भारतीय

सन् १८९५ में ईस्ट लंदनमें भारतीय आबादी बहुत कम थी । इसलिए उस बन्दरगाहकी नगरपालिकाने सोचा कि भारतीयोंके खिलाफ कानून बनानेके लिए यह मौका बहुत अच्छा है । अतः उसने केपकी विधान-सभासे प्रस्ताव किया कि उसे कानून बनानेके लिए, केवल भारतीयोंके विरुद्ध ही नहीं, आवश्यक अधिकार दिये जायें। दससे ऊपर घने छपे पृष्ठोंवाले इस अधिनियममें एशियाई शब्दका प्रयोग किया गया है और वह भी केवल दो या तीन जगह । इस अधिनियममें नगरपालिकाको अपने उपनियम बनानेके सम्बन्धमें साधारण अधिकार दिये गये हैं। एक धारा यातायात और मोरी-प्रणालीके बारेमें है । इसके द्वारा सम्राट्के भारतीय प्रजाजनोंकी स्वतन्त्रताका लापरवाहीके साथ समर्पण कर दिया गया है। क्योंकि अधिनियम की