पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/४४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४००
सम्पूर्ण गांधी वाङमय

धारा ५ की उपधारा २४ में लिखा है कि नगरपालिकाको उपनियम बनानेका अधिकार होगा जिनके अनुसार वह "वतनियों और एशियाइयोंके रहनेके लिए बस्तियाँ मुकर्रर कर सकेगी, उन्हें पृथक् कर सकेगी, समय-समयपर उनमें परिवर्तन कर सकेगी और उन्हें नष्ट भी कर सकेगी। फिर उसी धाराकी २५वीं उपधारामें इन बस्तियोंमें वतनी तथा एशियाई किन शर्तोंके अनुसार रहेंगे, क्या फीस, किराया और झोपड़ीका कर देंगे, आदि"के बारेमें निर्णय करनेके भी अधिकार दिये गये हैं। अधिनियम नगरपालिकाको यह भी अधिकार देता है कि वह निश्चय करे कि "ये लोग शहरकी किन सड़कों, खुली जगहों या पटरियोंपर नहीं चलेंगे या रहेंगे ।" यह कानून उन वर्तनियों या एशियाइयोंपर लागू नहीं होगा जो शहरकी सीमामें ७५ पौंड कीमतका कर लगाने योग्य जमीनके मालिक या काबिज होंगे, और जो नगर कारकुन (टाउन क्लार्क)से इस आशयके और वतनी होनेपर इस कानूनसे मुक्त हो जानेके प्रमाणपत्र प्राप्त कर लेंगे ।

स्मरण रहे कि केप उपनिवेशके दूसरे हिस्सोंमें भारतीयोंकी स्थिति ब्रिटिश दक्षिण आफ्रिका अन्य भागोंकी अपेक्षा कहीं अच्छी है। यह अधिनियम बोअर-हुकूमतके कानूनसे कहीं आगे बढ़ गया है। इसे सम्राट्की मंजूरी कैसे मिल गई, यह हमारे लिए एक रहस्य ही है । परन्तु इससे जाहिर होता है कि अगर चौकसी न रखी जाये तो कैसी सरलतासे महत्त्वपूर्ण हितोंका समर्पण किया जा सकता है। क्योंकि, हम दावेके साथ कह सकते हैं कि अगर इस अ-ब्रिटिश कानूनकी तरफ उच्चाधिकारियोंका ध्यान तुरन्त दिला दिया गया होता तो यह अन्याय कभी नहीं हो पाता । पाठकोंने देख लिया होगा कि यह कानून भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिका मूलवासियोंसे भी गिरी हालतमें डाल देता है, क्योंकि इसमें भारतीयोंके लिए कोई छूट नहीं है । स्थानीय भारतीय संघ (लोकल इंडियन असोसिएशन) ने ठीक ही कहा है कि इसमें "भारतीय राष्ट्रके भूतकालको" एकदम भुला दिया गया है, जिसकी “सभ्यता", लॉर्ड मिलनरके शब्दोंमें, "बड़ी प्राचीन है" और जिसको सन् १८९७ में श्री चेम्बरलेनने उपनिवेशके प्रधानमन्त्रियोंकी सभामें अधिक अभिजात कहा था । हम जानते हैं कि इस नगरपालिकाने यह कृपा जरूर की है कि उसने अपनी सब शक्तियों का प्रयोग नहीं किया है। परन्तु उनकी शुरुआत तो हो ही गई है। भारतीय पटरीपर नहीं चल सकते। ईस्ट लंदनकी पटरीपर चलनेके अपराधमें अच्छी वेशभूषावाले दो भारतीयोंपर जुर्माना हो चुका है। और यह तो स्पष्ट है कि अधिनियममें और भी जो अधिकार दिये गये हैं उनके बारेमें उपनियम बनानेसे नगरपालिकाको कोई रोक नहीं सकता ।

क्या श्री चेम्बरलेनके संकल्पका यही परिणाम है ? परम माननीय महानुभावने कहा था कि भारतीय "न्याययुक्त और सम्मानपूर्ण व्यवहारके अधिकारी हैं।" उन्होंने उपनिवेशियोंको संकीर्ण क्षेत्रीय सीमाओंके परे देखने और अपनी साम्राज्यकी सदस्यताको सिद्ध करनेकी सलाह दी थी। हम ईस्ट लंदनके उपनिवेशियोंसे पूछते हैं कि श्री चेम्बरलेनका उन्होंने जो स्वागत किया और उनकी नीतिके प्रति अपनी सहमति प्रकट की उसका वे इस अधिनियमके अस्तित्वके साथ, किस प्रकार मेल बैठा रहे हैं, जो कानूनकी किताबको कलंकित कर रहा है और ऐसी एक समस्त जातिका हठात् अपमान कर रहा है, जिसका एकमात्र अपराध यह है कि उसके लोग मितव्ययी, निर्व्यसनी और उद्यमशील हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २३-७-१९०३