पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/४४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२८४. लंदनकी सभा

हाल हीमें पूर्व भारत संघ (ईस्ट इंडिया असोसिएशन)के तत्त्वावधानमें हुई एक महान सभाका विवरण हम दे चुके हैं ।

इस सभामें बहुत-से मुख्य-मुख्य आंग्ल-भारतीय (ऐंग्लो-इंडियन) और भारतीय समाजके प्रसिद्ध नेता उपस्थित थे । इसकी कार्यवाहीसे प्रकट होता है कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजपर जो काला बादल मंडरा रहा है उसका निश्चित रूपसे कुछ उजला पहलू भी है।

सर विलियम वेडरबर्नने लगभग अपना सारा जीवन ब्रिटिश भारतीयोंकी सेवामें अर्पण कर दिया है। उनके प्रति आभार प्रकट करना उनकी महानताको सीमित करनेके समान होगा। बरसोंसे वे देशके बाहर और भीतर भारतीयोंकी सेवामें अनथक उत्साहके साथ लगे हुए हैं, और इस कामके लिए उन्होंने न केवल अपना समय, बल्कि धन भी अर्पित किया है। इसलिए कृतज्ञताके शब्दोंके रूपमें हम कुछ भी कहें, प्रत्येक भारतीयपर सर विलियमका जो ऋण है उससे उऋण नहीं हुआ जा सकता ।

जिसने भी भारतके इतिहासका अध्ययन किया है, और भारत द्वारा पैदा किये गये अंग्रेज राजनीतिज्ञोंको समझा है, उसे यह देखकर आश्चर्य हुए बिना नहीं रह सकता कि इस सभाकी कार्यवाहीमें विचारोंकी सहमति ओत-प्रोत थी । दूसरी सभाओंमें सर लेपेल ग्रिफिन और सर विलियम वेडरबर्न अक्सर एक दूसरेके विरोधमें खड़े पाये गये हैं; परन्तु इस मौकेपर एक साथ कन्धेसे कन्धा भिड़ाकर खड़े रहनेमें उन्हें हिचकिचाहट नहीं हुई। सच तो यह है कि, दक्षिण अफ्रिकाके उपनिवेशियोंके भारतीय-विरोधी रुखके प्रति कड़े शब्दोंमें अपनी नापसन्दगी जाहिर करनेमें वक्ताओंके बीच होड़-सी लग गई थी ।

अक्सर कहा जाता है कि घटना स्थलके लोग, सही दूरीपर खड़े होकर न देख सकनेके कारण, सम्बद्ध घटनाके बारेमें निष्पक्ष राय नहीं दे पाते । यदि निर्णय अपने खुदके बरतावके बारेमें करना हो तब तो यह और भी कठिन हो जाता है। इसलिए हम उपनिवेशियोंसे पूछते हैं कि क्या उन्हें यह नहीं लगता कि जब दक्षिण आफ्रिकाके बाहर प्रायः सर्वत्र उनके रुखकी एक स्वरसे निन्दा हो रही है तब उन्हींके रुखमें कोई मूलभूत खराबी होनी चाहिए ?

सर रेमंड वेस्ट एक बहुत बड़े न्यायशास्त्री हैं । वे बम्बई उच्च न्यायालयमें न्यायाधीश रह चुके हैं। अत्युक्तिकी भाषामें वे कभी नहीं बोलते। इस सभामें उन्होंने अपने हृदयके भाव इन शब्दोंमें प्रकट किये :

इस सभाके उद्देश्योंसे मुझे गहरी सहानुभूति है। हमें इस प्रश्नपर दृढ़तासे विचार करना चाहिए और तय करना चाहिए कि हम भारतीय प्रजाजनोंको साम्राज्यके सदस्य मानना चाहते हैं या नहीं ।

भारतीय समाजके सदस्योंसे उन्होंने अपील की कि वे अपने अन्दर साम्राज्यकी विशाल भावनाको ओत-प्रोत कर लें और सम्राट्के समस्त प्रजाजनोंको एकात्मभावसे देखें ।

दक्षिण आफ्रिकाके उपनिवेशी हमारे बन्धु-प्रजाजनोंके साथ जिस प्रकारका व्यवहार कर रहे हैं उसका उल्लेख करते हुए उन्होंने आश्चर्य प्रकट किया कि, यदि टासमानिया या दक्षिण आस्ट्रेलियासे मदद लेकर उपनिवेशी उसका बदला इस तरहका कानून

३-२६