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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बनाकर चुकाते कि कोई टासमानिया-निवासी सड़कोंको पैदल-पटरियोंपर नहीं चल सकेगा, अथवा उन्होंने ऐसा कानून पास किया होता कि न्यू साउथ वेल्सका कोई निवासी बगैर व्यक्ति कर दिये इस उपनिवेशमें नहीं लिया जा सकेगा और प्रवेश पा जानेपर नगरमें उसे म्यूनिसिपल या नागरिक अधिकार नहीं दिये जायेंगे तो लोग क्या कहते ? इस तरहके बरतावकी प्रतिक्रिया सारे साम्राज्यमें क्या होगी ? वे गरीब अपनी जानको खतरेमें डालकर लड़ती हुई फौजोंके बीचमें दौड़-दौड़कर गये हैं और वहाँसे घायलोंको उठा-उठाकर लाये हैं | इससे बढ़कर उदात्तता क्या हो सकती है ? साम्राज्यके समस्त सदस्योंके दिलोंपर इस आचरणका असर होना चाहिए। और, जिन उपनिवेशोंने अपने इन साथी प्रजाजनोंकी सेवाका प्रत्यक्ष लाभ उठाया, उनपर तो सबसे अधिक होना चाहिए। मैं तो मानता हूँ कि अगर ठीक तरहसे अपील की जाये तो उपनिवेशवासी केवल शर्मके मारे आजका रुख छोड़नेपर बाध्य हो जायेंगे। यह तो व्यापारी प्रतिस्पर्धा और जातीय संकीर्णताका, जिनको किसी समय जान-बूझकर उत्पन्न किया और बढ़ाया गया था, अवशेष है। एक साम्राज्यके प्रजाजनोंकी हैसियतसे अब उनका कर्तव्य है कि वे इन बुरे विचारोंसे अपना पिण्ड जल्दीसे-जल्दी छुड़ायें, और इन मामलोंमें साम्राज्यके सारे सदस्योंको समान समझें ।

उन्होंने आगे कहा कि वे इस प्रश्नपर अपने विचार इतने जोरके साथ प्रकट करना अपना कर्त्तव्य इसलिए मानते हैं कि इस प्रश्नको किस प्रकार हल किया जाता है, इसपर सारे साम्राज्यका, जिसका निर्माण हम सबने इतना धन और रक्त बहाकर किया है, कल्याण निर्भर है ।

इस सभामें जो अन्य भाषण हुए उनमें भी यही भाव प्रकट किये गये थे। सर लेपेलने बिना आगा-पीछा किये अपने भाषणमें उदाहरणके तौरपर रूसी साम्राज्यमें यहूदियोंके साथ किये गये व्यवहारका उल्लेख किया, यद्यपि यहाँ हम इन दोनों उदाहरणोंको समान स्तरपर रखना नहीं चाहते। सर मंचरजीने उपनिवेशियोंके द्वारा किये गये अन्यायकी साफ शब्दोंमें निन्दा की । उस महान् राजधानीके स्वतन्त्र वातावरणमें रहने और गहरे अध्ययनके कारण प्रश्नको बारीकीसे जाननेके कारण यदि दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी कानूनी निर्योग्यताओंपर उनका दिल तिलमिला उठा तो इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। श्री थोरबर्नने जो शब्द कहे उनपर हम आशा करते हैं, भारतमें हमारे देशभाई अवश्य विचार करेंगे। उनके सुझाव अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। अगर उनपर अमल किया जाये तो अवश्य बड़ा लाभ होगा । यों तो समस्त दक्षिण आफ्रिकाके उपनिवेशी काम-काजमें व्यस्त रहते हैं, फिर भी हम आशा करते हैं कि वे थोड़ा समय निकाल कर इस सभाका हाल पढ़ेंगे और उसपर विचार भी करेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २३-७-१९०३