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२८५. ईस्ट रैंड पहरेदार संघ

इस संघके तौर-तरीकोंके बारेमें चाहे जो कहा जाये, इसके सदस्योंने इसके लिए जो नाम पसन्द किया है उसे अपने कामोंसे निस्सन्देह सार्थक कर दिया है। क्योंकि, जबसे इस संघकी स्थापना हुई है, यह भारतीयोंके सवालके बारेमें ही सही, निस्सन्देह अत्यधिक चौकन्ना रहा है। इस विषयको तो इसने अपना विशेष विषय बना लिया है। इन दिनों यह बॉक्सबर्गकी भारतीय बस्तीको हटानेके प्रस्तावको लेकर श्री मूअरके पीछे पड़ा हुआ है। इसके सदस्य जिस दृढ़ताके साथ अपने इस अंगीकृत कार्यमें भिड़ गये हैं, वह सचमुच प्रशंसनीय है। अच्छा होता अगर यह शक्ति किसी दूसरे उपयुक्त और अच्छे कार्यमें लगी होती । किन्तु तरस आता है कि आज उसका उपयोग एक निर्दोष जातिकी आजादी और शायद रोजी भी छीननेमें किया जा रहा है। हाल ही में बॉक्सबर्गमें ईस्ट रैंड पहरेदार संघ (ईस्ट रैंड विजिलेंस असोसिएशन) की जो बैठक हुई थी उसका कुतूहलजनक विवरण हम अन्यत्र ट्रान्सवाल लीडरसे दे रहे हैं। हम समझ नहीं पा रहे हैं कि बॉक्सबर्गकी भारतीय बस्तीको वन ट्री हिल [ एक पेड़वाली टेकरी ] पर हटानेके बारेमें स्वास्थ्य निकायकी इच्छाको माननेसे उपनिवेश-सचिवने जो इनकार कर दिया उसमें निकायकी क्या हतक हो गई, जैसी कि इन सज्जनोंकी शिकायत है । याद रहे कि बाजार-विषयक सूचनायें स्वास्थ्य निकायकी सलाह लेनेका जो उल्लेख है उसकी ध्वनि यह नहीं कि हुकूमतको सदा स्वास्थ्य निकायकी बात माननी ही चाहिए। वह उल्लेख तो एक शिष्टाचारके रूपमें है। इस सूचनाका मूल आधार सन् १८८५ का तीसरा कानून है । अब अगर इन बस्तियोंके लिए स्थान पसन्द करनेके विषयमें नगर परिषदें या स्वास्थ्य निकाय शासनको जो भी सलाह दें उसका मानना शासनके लिए अनिवार्य मान लिया जाये तो यह इस कानूनके स्पष्ट निर्देशके शब्दशः विपरीत होगा। यह कानून स्थानीय निकायोंको न तो कोई सत्ता प्रत्यक्ष रूपसे प्रदान करता है और न उसका ऐसा कोई मंशा है। ये बस्तियाँ कायम करनेका अधिकार केवल सरकारको, और उसीको, है । इस कानूनका असर जिनपर होता है विशुद्ध रूपसे उनके हितको अगर दृष्टिमें रखकर विचार किया जाये तो हम तो यह भी कहेंगे कि एक बार इस तरह कायम हो जानेके बाद बस्तियोंको वहाँसे पुनः हटानेका अधिकार खुद सरकारको भी नहीं है। इसलिए अगर इस संघको शहरके स्वास्थ्यकी बहुत अधिक चिन्ता है और उसके दिलमें व्यापारगत ईर्ष्या अथवा अन्य किसी प्रकारका दुर्भाव नहीं है तो उनको हम यही सलाह दे सकते हैं कि वे क्रूगर्सडॉपके स्वास्थ्य निकाय द्वारा पेश किये उदाहरणका अनुकरण करें। वे भारतीयोंको उनकी मौजूदा जगहसे खदेड़ कर किसी दूसरी जगह दूर भेजनेका खयाल ही छोड़ दें, क्योंकि वहाँ उसका प्रबन्ध करना बहुत कठिन होगा। इन बस्तियोंमें ही जहाँ-कहीं सफाईमें त्रुटियाँ और स्वास्थ्यके कड़े सिद्धान्तोंको भंग होते देखें, उनको ठीक करनेमें सच्चे दिलसे लग जायें। हम नहीं मान सकते कि उस दूरकी जगहपर भारतीयोंको भेज देनेके बाद इस संस्थाके सदस्य उन्हें वहाँ बिलकुल अकेला रहने देना चाहते हैं। अगर एक बार यह मान लिया कि भारतीय जहाँ-कहीं भी रहें, उनकी उपस्थिति मात्र उस बस्तीके स्वास्थ्यके लिए खतरनाक होती है, तब तो निस्सन्देह हमारे इन मित्रोंको यह भ्रम हो ही नहीं सकता कि भारतीयोंको शहरसे कुछ मील दूर हटा देनेके बाद, और उनकी बस्तियोंकी सफाई आदिकी उपेक्षा करते रहनेपर, शहरके स्वास्थ्यको कोई खतरा नहीं पैदा होगा। प्रिटोरियाके डॉ० वील