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टिप्पणियाँ

कोई नया कानून बननेवाला है, इसपर भी अगर बाजार बनने ही वाले हैं तो श्री चेम्बरलेनको घोषणाका और उपनिवेश-सचिवकी स्वीकृतिका अर्थ क्या रहा? हमें भरोसा है कि ट्रान्सवालकी विधानसभा अथवा साम्राज्यकी संसदके कुछ सदस्य तमाम सम्बन्धित लोगोंके हितमें इस प्रश्नका खुलासा करवा लेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २३-७-१९०३

२८९. टिप्पणियाँ[१]

[ जोहानिसबर्ग
जुलाई २५, १९०३ ]

ट्रान्सवालमें ब्रिटिश-भारतीयोंकी स्थिति

इस हफ्ते विधानसभाने जो प्रस्ताव पास किया है उससे सम्बन्ध रखनेवाली अखबारी-कतरनें[२] भेजी जा रही हैं। इनसे जाहिर हो जायेगा कि ट्रान्सवालकी सरकार इस साल निकाली गई सूचना ३५६ के अनुसार ब्रिटिश भारतीयोंका बाजारोंमें स्थानान्तर करनेपर उतारू है । प्रस्तावके अनुसार ट्रान्सवालमें १९ जगहोंपर बस्तियाँ स्थापित हो चुकी हैं। इस बातका बड़ा डर है कि सरकार वर्तमान विधानमें कोई संतोषजनक फेरफार नहीं करना चाहती। नहीं तो ट्रान्सवालमें जगह-जगह बस्तियाँ कायम करनेका खर्च वह क्योंकर उठाती ? लॉर्ड मिलनरको भेजी गई अर्जीके उत्तरकी कोई खबर नहीं है, और इसलिए उन भारतीय व्यापारियोंकी स्थिति अनिश्चित है, जिन्हें लड़ाईके बाद व्यापार करनेके परवाने दिये गये थे। श्री चेम्बरलेनने फरमाया था कि जिस हदतक मुमकिन है, उस हदतक कानून नरमीसे लागू किया जा रहा है । मगर तथ्य उलटी ही बात जाहिर कर रहे हैं । सरकारसे कमसे-कम आशा यह है कि वह भारतीयोंको १८८५ के कानून ३ का थोड़ा-बहुत जो कुछ भी फायदा दे सकती है, दे। कुछ भी हो, वह उन्हें बस्तियोंमें स्थावर सम्पत्ति खरीदनेका अधिकार देता है। बावजूद इसके, सरकार सिर्फ २१ सालका पट्टा देनेकी तजवीज करना चाहती है; और इस पट्टेपर भी इतनी मर्यादाएँ लगाई गई हैं कि बिक्रीके खयालसे इनकी कोई कीमत नहीं बचती । पाँचेफ़स्ट्रूममें तो शहरमें रहनेवाले भारतीयोंके खिलाफ कार्रवाइयाँ शुरू भी हो चुकी हैं। अगली ४ अगस्ततकके लिए मामला मुल्तवी कर दिया गया है, मगर यह समझमें नहीं आता कि बस्तियोंमें जानेका कानून लागू करनेकी यह हड़बड़ी किस लिए है ? पुराने ऑरेंज फ्री स्टेटके कानूनमें भी लोगोंको एक सालकी सूचना दी जाती थी। ट्रान्सवालमें जहाँतक निवासियोंका सम्बन्ध था, बस्ती-कानून जबसे बना है तभीसे मृत पत्रके समान रहा है -- यानी १२ बरस हो गये, वह निवासियोंपर लागू नहीं किया गया। इसे लागू करनेका इरादा हमारी अपनी सरकारने पिछले अप्रैलमें जाहिर किया और अभी तीन महीने नहीं हुए, उसके मातहत कार्रवाइयाँतक जारी हो गईं; बावजूद इसके कि बाजार सूचनाके निकलते ही यह घोषणा भी की गई थी कि यह अस्थायी है और नया विधान जल्दी ही सामने आयेगा। विधान सभाके प्रस्ताव और पाँचेफ़स्ट्रूमकी कार्रवाइयोंसे

  1. ये टिप्पणियाँ इंडिया में भी ४-९-१९०३ को प्रकाशित हुई थीं ।
  2. ये उपलब्ध नहीं हैं ।