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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

सरकारका जो रुख जाहिर हुआ है उससे ब्रिटिश भारतीयोंमें भय जाग गया है और उनका चित्त अस्थिर हो गया है। खयाल यह था कि बाजार सूचनाओंके जारी होनेका फिलहाल यही असर होगा कि व्यापारके नये परवाने देनेपर पाबन्दी लग जायेगी -- और उत्तेजना नये परवाने जारी किये जानेको लेकर ही थी। गंदगी और दूसरे कारण जो सामने रखे जाते हैं वे तो व्यापारियोंको उखाड़ फेंकनेकी खास नीतिको मजबूत बनानेके लिए ही हैं। आशा की जाती है कि यह अनिश्चितता जितनी जल्दी हो सकेगी दूर की जायेगी ।

नेटालमें प्लेगके कारण लगी पाबन्दियोंके बारेमें लेफ्टिनेंट गवर्नरको भेजे गये अन्तिम पत्रका उत्तर आ गया है। कहा गया है कि परमश्रेष्ठ भारतीय आगन्तुकोंपरसे रोक हटानेमें असमर्थ हैं। भले ही वे अपने खर्चेपर सूतक (क्वारंटीन) की अवधि बिताना स्वीकार करें। जैसे दिन बीत रहे हैं, बात गम्भीर होती जा रही है। जो शरणार्थी नेटालमें अपने नम्बरकी राह देखते हुए रुके पड़े हैं वे बड़े कड़वे होकर शिकायतें करते हैं, और वे लगभग कंगालोंकी स्थितितक जा पहुँचे हैं। इस वक्त दक्षिण आफ्रिकामें जमाना तंगीका है । शरणार्थियोंको मदद करनेमें उनके मित्रोंकी आमदनीमें खासी कटौती हो जाती है और रोक बिलकुल बेमतलबकी-सी जान पड़ती है। भारतीय ट्रान्सवालसे नेटाल आकर वापस जा सकते हैं। अगर दूसरे लोगोंकी अपेक्षा देशमें जल्दी प्लेग लानेका वस्फ भारतीयोंमें अधिक होता तो फिर जो नेटाल जाकर लौट सकते हैं वे भी आज्ञाकी प्रतीक्षामें वहाँ रुके रहनेवालोंकी तरह ही प्लेग फैला सकते हैं ।

दूसरी बात जो गंभीर होती जा रही है, यह है कि वे ब्रिटिश भारतीय, जो शरणार्थी नहीं हैं, किसी हालतमें ट्रान्सवालमें नहीं आने दिये जाते । जबतक सब भारतीय शरणार्थी उपनिवेशमें प्रवेश न पा लें तबतक उन्हें आज्ञा नहीं मिल सकती। यूरोपीयोंपर यह नियम बिलकुल लागू नहीं है। इस रोकसे निवासियोंको कष्ट होता है, क्योंकि घरेलू और दूकानके कामके लिए केप, डेलागोआ-बे और नेटालसे उन्हें कोई नौकर नहीं मिलता। इससे उनके धंधेपर काफी असर होता है । और जो इसी भरोसेपर हिन्दुस्तानसे निकल पड़े थे कि ट्रान्सवालमें प्रवेशपर रोक लगानेवाला कोई कानून नहीं है और उन्हें ट्रान्सवालमें प्रवेश मिलेगा, उनपर भी इसका असर पड़ता है । हमने आशा की थी कि स्थानीय सरकारसे हमें सुविधा मिल जायेगी, किंतु चूँकि प्रयत्नोंका उत्तर कहींसे कुछ नहीं मिला है, प्लेग-संबंधी पाबन्दियों और शरणार्थी भारतीयोंपर रोकके सिलसिलेमें इंग्लैंडके मित्रोंको तकलीफ देना जरूरी हो गया है ।

साथ ही अखबारकी वे कतरनें भी नत्थी हैं जिनमें भारतीय श्रमिकोंके बारेमें लॉर्ड मिलनरकी माँगका श्री चेम्बरलेन द्वारा दिया गया उत्तर है[१]

भारत-सरकारने उसकी हालत सुधारनेके लिए जो प्रयत्न किये हैं भारतीय समाजने उन्हें कृतज्ञभावसे देखा-समझा है और आशा है कि जबतक इस उपनिवेशकी सरकार सुविधा नहीं देती यही रुख रखा जायेगा ।

इंडिया ऑफ़िस : ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, ४०२ ।

  1. ये यहाँ नहीं दी जा रही हैं। देखिए इंडियन ओपिनियन, ३०-७-१९०३ :