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२९०. साम्राज्यकी दासी

श्री ब्रॉडरिकने घोषणा की है कि भारतसे दक्षिण आफ्रिकास्थित फौजके खर्चका एक हिस्सा देनेके लिए कहा जायेगा; कारण यह है कि यदि कहीं रूसने हमला कर दिया तो भारतकी सीमाओंकी रक्षाके लिए दक्षिण आफ्रिकामें तैनात सैनिकोंकी जरूरत पड़ सकती है । सो, यदि भारत सरकार आत्मतुष्ट होकर चुप बैठी रही तो अनहोने आक्रमणकी संभावना मान कर गरीब भारतको दक्षिण आफ्रिकाकी फौजके खर्चका एक हिस्सा देना पड़ेगा ।

समुद्र पारके तारों द्वारा जो खबरें आई हैं उनसे ज्ञात होता है कि लंदनके अधिकतर बड़े दैनिकोंने ऐसे किसी भी विचारका विरोध किया है और इस सुझावको "लज्जाजनक कहा है । परन्तु यह तो उच्चस्तरीय राजनीतिकी बात है। हम इसमें दखल नहीं देना चाहते। हम तो इसका उल्लेख इसलिए कर रहे हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें बसे ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिपर इसका बहुत बड़ा असर पड़ता है। यह भूखण्ड किसी दिन एक महान् संघ-राज्य बननेवाला है । अतः हम जानना चाहते हैं कि इस प्रश्नके विषयमें यहाँके उपनिवेश-वासियोंकी नीति क्या है । जहाँतक साम्राज्यका भार उठानेका ताल्लुक है, जब कभी मौका आता है भारतको स्वभावतः कमसे-कम अपना हिस्सा अदा करनेके लिए याद किया जाता है और कहा जाता है कि वह इसे खुशी-खुशी उठा ले । परन्तु क्या भारतको केवल बोझ उठानेमें ही अपना हक अदा करना है और साम्राज्यके विशेष अधिकारोंकी विभूति कभी प्राप्त नहीं करनी, या उसमें हिस्सा कभी नहीं बँटाना ?

हमारे पढ़नेमें आता है कि भारत शुरूसे तमाम युद्धोंमें अपना कर्तव्य बराबर अदा करता आया है -- हम कहना चाहते हैं, वीरतापूर्वक । लॉर्ड मेकालेने लिखा है कि अर्काटके घेरेमें भारतीय सिपाहियोंने अपने हिस्सेके चावल अपने अंग्रेज साथियोंको दे दिये और खुद केवल मांड पीकर सन्तोष किया। यह निरी भावुकता नहीं थी । घिरी हुई फौजें बुरी तरह भूखों मर रही थीं, इसलिए भारतीय फौजोंने अपना हिस्सा गोरोंके लिए उपलब्ध कर देना कर्त्तव्य समझा । स्वर्गीय सर जॉन के अफगान युद्धका जो हूबहू वर्णन छोड़ गये हैं उसमें भी लिखा है कि बगैर किसी शिकायतके हजारों भारतीय सिपाहियोंने बर्फीले दरोंमें अपनी जानें दे दीं। और आज सोमालीलैंडमें ब्रिटेनकी तरफसे कौन लड़ रहा है ? यहाँके जो निवासी हाल हीमें वहाँसे लौटकर आये हैं, वे कहते हैं कि उस युद्धके मुकाबलेमें यहाँका बोअर युद्ध खिलवाड़ था। वहाँ पानी और यातायातका भयंकर कष्ट है। पिछली चीनकी मुहिममें भी यही हुआ। वहाँ भी भारतीय सिपाही अपने अन्य साथियोंकी अपेक्षा कम बहादुरीसे नहीं लड़े और उन्हें अपने बरतावसे सभी सैनिक टुकड़ियोंकी प्रशंसा मिली। खुद दक्षिण आफ्रिकामें भी हमने देखा कि ठीक समयपर सर जॉर्ज व्हाइट अपने दस हजार अनुभवी सैनिकोंको लेकर भारतसे आ पहुँचे और लड़ाईका रुख बदल गया । कोई कह सकता है -- यद्यपि यह कहना शोभास्पद नहीं है -- कि भारतसे जो फौजें आईं उनमें से अधिकांश अंग्रेज सिपाही थे । तो, जवाबमें हम स्टैंडर्डका यह उद्धरण इंडियासे पेश करना चाहते हैं :

हमें याद रखना चाहिए कि लेडीस्मिथका बचाव मुख्यतः भारतसे आई हुई फौजोंने किया। पीकिंगमें भी हमारे दूतावासकी रक्षा भारतीय सेनापतिने भारतीय सिपाहियोंकी मददसे ही की थी । वास्तवमें चीन भेजी गई हमारी सारी फौज भारतीय सिपाहियोंकी