पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/४५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४१२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अमल भारतीयोंके साथ इतनी सख्तीके साथ किया जा रहा है कि वह एक कठोर प्रवासी-प्रतिबन्धक कानूनकी तरह काम दे रहा है । ये तथा अन्य कितनी ही बातें हैं जिनकी तरफ हमने अपने विशेष लेखमें पाठकोंका ध्यान दिलाया है।[१]

भाषणके दूसरे भागमें कुछ सिद्धान्त पेश किये गये हैं, जिनपर वक्ताकी रायमें, साम्राज्य सरकारको अपने निर्णय निर्धारित करने चाहिए। और यहाँ भी सर विलियमने, हमारी समझमें लोक-भावनाके तर्कको, वह जबतक बुद्धि और न्यायपर आधारित न हो, अमान्य करके ठीक किया है। उन्होंने उदाहरण दे-देकर बताया है कि लड़ाईसे पहले श्री चेम्बरलेनसे लेकर प्रश्नसे सम्बन्धित नीचे तकके हर अधिकारीका रुख ब्रिटिश भारतीयोंके प्रति सहानुभूतिपूर्ण था, और वह व्यापारिक ईर्ष्या अथवा जातिगत दुर्भावपर आधारित लोक-भावनासे संचालित होना स्वीकार नहीं करता था । इस प्रश्नपर उन्होंने समस्त साम्राज्यकी दृष्टिसे विचार किया है और कहा है :

चूँकि इस प्रश्नका सम्बन्ध संसार-भरमें फैले सारे साम्राज्यके नागरिकोंसे है इसलिए यह मूलतः एक साम्राज्यीय प्रश्न है। इसका निर्णय केन्द्रीय सत्ताको ही साम्राज्यके सुनिश्चित सिद्धान्तोंके आधारपर करना चाहिए। दक्षिण आफ्रिकाके उपनिवेशोंमें भारतीयोंपर कानूनी प्रतिबन्ध लगानेके प्रति अपना विरोध प्रकट करते हुए मैंचेस्टर व्यापार-संघ (मँचेस्टर चेम्बर ऑफ कॉमर्स) ने उपनिवेश कार्यालयको जो विरोध-पत्र भेजा है, उसमें इन सिद्धान्तोंको समुचित रूपमें रखा गया है। उसमें कहा गया है, 'व्यापार-संघकी दृष्टिमें यह प्रतिबन्ध भारतीयोंके साथ अन्याय करता है, जो उन्हीं सब अधिकारोंके पात्र माने जाते हैं, जो सम्राट्की अन्य प्रजाको प्राप्त हैं। ये अधिकार हैं--- जिस तरहके कानूनकी शिकायत की गई है वैसे किसी भी कानूनकी पाबन्दियोंसे बिलकुल मुक्त रहकर साम्राज्यके किसी भी भागमें स्वतन्त्रतापूर्वक जाने-आने और बसनेके अधिकार । यह कानून तो न केवल धृष्टतापूर्ण है, बल्कि उपनिवेशोंके अपने स्वार्थकी दृष्टिसे भी हानिकर माना जाता है। सम्राट्के भारतीय प्रजा-जनोंके बारेमें इस संघके हृदयमें बड़ा आदर है । और उसका कारण यह है कि वे अच्छे नागरिक हैं, बुद्धिमान हैं, उद्यमशील हैं, शान्तिप्रिय हैं और अच्छे व्यापारी भी हैं।

भाषणका तीसरा भाग जो सबसे महत्त्वपूर्ण और व्यावहारिक भी है, सर विलियमके एक सुझावको विस्तारसे पेश करता है। चूंकि दक्षिण आफ्रिकामें इस बातपर काफी मतभेद है और मतोंमें परस्पर विरोधी मत भी पाये जाते हैं, इसलिए सर विलियमने भारतीयोंके खिलाफ ऐसे किसी कानून बनानेकी जरूरत भी है या नहीं, इस विषयमें उपनिवेश कार्यालयके मार्गदर्शनमें केन्द्रीय अधिकारियों द्वारा एक पूरी और विधिवत् जाँच करानेकी वकालत की है । इस जाँचके लिए उन्होंने दो शर्तें रखी हैं :

चूंकि भारतीयोंके विरुद्ध काममें लाये जानेवाले प्रस्तावित उपायोंका रूप नियन्त्रण लगानेवाला है, इसलिए एक तो इनकी जरूरत सिद्ध करनेकी जिम्मेदारी पूरी तरहसे उनपर हो जो भारतीयोंपर निर्योग्यताएँ लादना चाहते हैं; दूसरे दोनों पक्षोंको समान स्तरपर लानेके लिए यह आवश्यक है कि प्रिटोरियाकी विज्ञप्ति वापस ले ली जाये ।

  1. देखिए "दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीय ट्रान्सवाल," ११-६-१९०३ ।