ब्रिटिश भारतीयोंने अपने अनेक स्मृतिपत्रोंमें बार-बार ऐसी जाँचकी मांग की है। अगर सर विलियमका इस दिशामें किया गया प्रयत्न सफल हुआ तो हम उनके अत्यन्त आभारी होंगे। दोनों पक्षोंके लिए इससे अधिक न्यायोचित दूसरी कार्यवाही नहीं हो सकती। हमने सदा भारतीयोंकी भलाइयों और बुराइयोंको पूरी तरह जाहिर करनेकी हिमायत की है और हम ऐसी जाँचका सच्चे दिलसे स्वागत करेंगे। लोक-भावनाको सन्तुष्ट करनेकी यह पद्धति बड़ी पुरअसर है। जो ब्रिटिश संविधानके मातहत पले-बढ़े हैं उन्हें स्वभावतः व्यवस्था और न्यायसे प्रेम होता है । आज बहुत-सी गलतफहमियाँ फैली हुई हैं और ज्यादातर लोगोंने सही जानकारीके अभावमें अपनी यह राय बना ली है कि भारतीयोंका इन उपनिवेशोंमें रहना एक खालिस बुराई है, जिससे सारे खतरे उठाकर भी बचना चाहिए। किन्तु यदि किसी निष्पक्ष आयोगकी जांचमें यह सिद्ध हुआ, जिसका हमें भरोसा है, कि उपनिवेश वासियोंकी यह राय निराधार है और उलटे सच यह है कि कितने ही अल्प परिमाणमें क्यों न हो, भारतीयोंके उपनिवेशमें आने और रहनेसे उपनिवेशको लाभ ही हुआ है, तो हमारा खयाल है जनता इस घोषणाका स्वागत करेगी और आज जो द्वेष और दुर्भाव हम यहाँ देख रहे हैं वह अपनी मौत मर जायेगा ।
इसलिए हम आशा करते हैं कि तमाम सम्बन्धित पक्षोंके हितमें उस सभाकी तरह उपनिवेश और भारत कार्यालय भी सर विलियमके इस अत्यन्त उचित प्रस्तावको स्वीकार कर लेंगे । और निष्पक्ष जाँच आयोगकी नियुक्तिसे एक ऐसा प्रश्न हल हो जायेगा जिसका अभी कोई ओर-छोर ही दिखाई नहीं देता ।
इंडियन ओपिनियन, ३०-७-१९०३
२९२. कसौटीपर
ट्रान्सवालमें हमारे देशभाई इस समय ऐसे कष्ट और चिन्ताओंमें से गुजर रहे हैं जो, हमारा खयाल है, किसी भी जन-समूहका धैर्य खपानेके लिए काफी हैं। किन्तु ठीक यही कष्ट और चिन्ताएँ प्रकट करेंगी कि वे इनसे यशस्वी होकर निकलनेमें समर्थ हैं या नहीं, और उनमें धैर्य तथा स्थिरताके वे सद्गुण हैं या नहीं, जिनके ब्रिटिश भारतीयोंमें होनेका हम अक्सर दावा करते आये हैं। ट्रान्सवालकी सरकार ब्रिटिश भारतीयोंके उन अधिकारोंको भी सहज भावसे छिनवा देना चाहती है जो क्रूगर-सरकार द्वारा मंजूर कानूनोंके मुताबिक उनको मिलने चाहिए। इस मासकी २२ तारीखको विधानसभाकी बैठकमें उपनिवेश सचिवने यह प्रस्ताव रखा कि लेफ्टिनेंट गवर्नरने अपनी कार्यकारिणीमें जो प्रस्ताव मंजूर किया है उसे यह सभा भी अपनी मंजूरी दे दे । सभाकी बैठकमें, कुछ सदस्योंकी इस घोषणाके बाद कि इसमें भारतीयोंको बहुत अधिक दे दिया गया है, यह प्रस्ताव कुछ संशोधनके साथ मंजूर कर लिया गया। जबतक हमारे सामने कोई दूसरा ठोस प्रमाण नहीं आता, हमें अनिच्छापूर्वक इस नतीजेपर पहुँचना पड़ेगा कि या तो वर्तमान कानून रद होगा ही नहीं, या नया कानून वर्तमान कानून जैसा ही होगा; बहुत सम्भव है, वह इससे भी खराब हो । उक्त प्रस्ताव इस वर्षकी सूचना ३५६ के, जो सामान्य रूपसे बाजारोंवाली सूचना कही जाती है, सिद्धान्तको पुनः स्थापित करता है। इसमें ब्रिटिश-भारतीयों और दूसरोंको एशियाइयोंकी बस्तियोंमें अधिकसे-अधिक २१ वर्षके पट्टेपर जमीनें निश्चित किराये पर देनेकी मंजूरी दी गई है । १९ कस्बोंके अन्दर इनके नकशे निश्चित भी हो