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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

चुके हैं। हमें यह भी ज्ञात हुआ है कि इनमें से प्रत्येकके बारेमें स्थानीय मजिस्ट्रेट अथवा सहायक मजिस्ट्रेट और स्वास्थ्य निकायकी सलाह और मंजूरी ली जा चुकी है। जिन लोगोंको इन बस्तियोंमें रहनेके लिए मजबूर किया जानेवाला है उनसे भी सलाह ली गई है या नहीं, इस बारेमें कहीं एक शब्द भी नहीं है। बॉक्सबर्ग और जर्मिस्टनके कार्योंसे अगर दूसरी जगहोंके कार्योंका अनुमान लगाया जा सकता हो, तो इन स्थायी मजिस्ट्रेटों और स्वास्थ्य-निकायोंने क्या किया होगा, इसका हम सहज अनुमान लगा सकते हैं। बॉक्सबर्गमें वर्तमान बस्तीको उसके स्थानसे दूसरी जगह ले जानेका प्रयत्न किया जा रहा है और इस विषयमें स्वास्थ्य-निकाय तथा उपनिवेश-सचिवके बीच गतिरोध पैदा हो गया है । जर्मिस्टनका मजिस्ट्रेट उपनिवेश-सचिवकी धृष्टतापर मुखर हो उठा है। वह कहता है कि बस्तियोंके लिए कौन-सी जगह उपयुक्त होगी इस बारेमें उपनिवेश-सचिवने मुझसे नहीं पूछा, दूसरोंसे सलाह ले ली। "मेरे पीठ पीछे" -- ये उसके शब्द हैं । प्रस्तावका नकद परिणाम यह है कि सेतु बँध चुका है, कटक उतरनेकी देर है । जगहें तैयार होते ही ब्रिटिश भारतीय चाहें अथवा नहीं, उनको वहाँ जानेके लिए मजबूर किया जायेगा । और याद रखना चाहिए कि व्यापार-व्यवसायका अधिकार भी उन्हें इन बस्तियोंके अन्दर ही होगा । यह पद्धति बोअर-सरकारकी पद्धतिसे बेशक दो कदम आगे ही है । उस हुकूमतमें स्थानकी पसन्दगीके प्रति अपना विरोध प्रकट करनेका अवसर भारतीयोंको था । जोहानिसबर्गमें नई बस्ती कायम करनेके बारेमें श्री टाबियान्स्कीको जब कुछ रिआयत देनेका प्रस्ताव हुआ और यह रिआयत मंजूर होनेसे पहले इसकी खबर भारतीयोंको लग गई तो उन्होंने इसका विरोध किया और उसमें उन्हें सफलता भी मिल गई। एक भी भारतीयको वहाँसे नहीं हटाया गया और वह रिआयत भी अन्तमें मंजूर नहीं की गई। आज स्थिति यह है कि १९ भिन्न-भिन्न जगहोंमें बस्तियाँ बनाई जा चुकी हैं और जिनको वहाँ बसाया जा रहा है उन्हें नामको भी नहीं पूछा गया । निश्चय ही परिस्थिति गम्भीर और अत्यन्त उत्तेजनात्मक है । प्रस्तावके अनुसार जो किराया-पट्टे मिलेंगे वे भी भारतीयोंको वर्तमान कानूनके अनुसार मिले हुए अधिकारोंको कम कर देंगे; क्योंकि कानूनमें कहीं यह नहीं बताया गया है कि ट्रान्सवालमें अन्यत्र जिस प्रकार भारतीय जायदाद रख सकते हैं वैसे यहाँ कोई निश्चित जायदाद नहीं रख सकेंगे । उदाहरणार्थं, जोहानिसबर्गमें भारतीय बस्तीके निवासियोंको कानूनके अनुसार अपनी जगहोंके पूरे अधिकार दे दिये गये थे । और वहाँ बनाये गये सारे-के-सारे ९६ बाड़े (स्टैंड) ९९ वर्षके पट्टे पर दिये गये हैं । शहरके दूसरे भागोंमें भी लगभग सारे पट्टे इसी मियादके हैं। फिर भी, आश्चर्य है, ब्रिटिश लोकसभामें प्रश्नकर्ताओंके जवाबमें श्री चेम्बरलेनको हम यही कहते पा रहे हैं कि वर्तमान कानूनका अमल पहलेकी अपेक्षा अधिक नरमीसे किया जा रहा है। इसपर टीका-टिप्पणी व्यर्थ है । {{left|[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३०-७-१९०३