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२९३. लॉर्ड मिलनर और फेरीवाले आदि

ट्रान्सवालकी रेलगाड़ियोंके कार्यके लिए गिरमिटिया भारतीयोंको लानेके बारेमें अन्यत्र प्रकाशित पत्र-व्यवहार पढ़नेसे बहुत बड़ी सीख मिलेगी। इस सिलसिलेमें लॉर्ड मिलनरने श्री चेम्बरलेनको जो खरीता भेजा है उसके केवल एक अंशपर आज हम विचार करेंगे । लॉर्ड महोदयने निम्नलिखित टिप्पणी की है : "आज हम बड़ी भोंड़ी स्थितिमें पड़ गये हैं । उपनिवेशमें छोटी हैसियतवाले भारतीय व्यापारियों और फेरीवालोंकी बाढ़ आ गई है। इनसे समाजको कोई लाभ नहीं है । और जिन भारतीय मजदूरोंकी हमें बहुत जरूरत है, उन्हें हम ला नहीं पा रहे हैं। अगर ये भाव किसी पक्षपातीने व्यक्त किये होते तो कोई शिकायत की बात न होती, यद्यपि तब भी वे वास्तविकताके विपरीत तो होते ही। परन्तु लॉर्ड मिलनरके उच्च पदकी मुहर लग जानेसे इन्हें समझ सकना बहुत मुश्किल हो रहा है और श्रीमानके प्रति उचित आदर रखते हुए भी हमें निःसंकोच कहना पड़ रहा है कि उनका यह प्रहार बड़ा निष्ठुर है। हमें बहुत भय है कि श्रीमानपर कामका बोझ इतना बड़ा है कि उन्हें परिस्थितिका अध्ययन करनेका अवसर ही नहीं मिला और उपनिवेशमें भारतीय व्यापारियों और फेरीवालोंके बारेमें आम तौरपर जो भावना फैली हुई है उससे वे पथ-भ्रान्त हो गये हैं । अब जरा देखिए कि स्वयं यहाँकी जनता स्वर्ण-ज्वर चढ़नेसे पहले, जिससे वह आज पीड़ित जान पड़ती है, क्या कहती थी। हम देखते हैं कि सन् १८९६ में कोई २,००० यूरोपीयोंने --- जिनमें बहुतसे भूतपूर्व नागरिक भी थे --- भूतपूर्व अध्यक्ष क्रूगरकी सेवामें एक प्रार्थनापत्र भेजा था । इसमें उन्होंने अध्यक्ष महोदयको विश्वास दिलाया था कि उनकी रायमें भारतीय व्यापारी और फेरीवाले समस्त समाजके लिए सचमुच लाभदायक हैं। आज भी फेरीवाले समाजके लिए लगभग अनिवार्य माने जाते हैं । उपनगरोंमें बसनेवाले परिवारोंको ये ही जरूरतकी चीजें पहुँचाते हैं। दुकानवालोंके लिए वहाँ दूकानें खोलनेसे लाभ न होगा; क्योंकि बड़े शहरोंको छोड़कर सर्वत्र मकान बहुत दूर-दूर बिखरे हुए हैं। बड़े-बड़े शहरोंमें भी व्यापार-केन्द्रोंको छोड़कर अन्यत्र यही हाल है । परन्तु हाथ-कंगनको आरसी क्या ? इन फेरीवालों और व्यापारियोंकी उपयोगिताका सबसे उत्तम प्रमाण यह निर्विवाद सत्य है कि उनकी गुजर अधिकांशमें यूरोपीयोंके आश्रयसे ही होती है। हमें आश्चर्य है कि इतनी स्पष्ट बात लॉर्ड महोदयके ध्यानमें कैसे नहीं आई । परन्तु इस अकाट्य प्रमाणको भी छोड़ दीजिए। इस प्रश्नपर नेटालमें इकट्ठे किये गये प्रमाणोंको अगर श्रीमान मानें तो भारतीयोंके प्रश्नकी जाँचके लिए नेटालमें नियुक्त आयोगके सामने भारतीय व्यापारियोंके पक्षमें जो ढेरों सबूत पेश हुए थे उन्हींकी तरफ हम श्रीमानका ध्यान दिलायेंगे । इन सारे प्रमाणोंका अध्ययन कर लेनेके बाद आयोगने अपना मत प्रकट करते हुए लिखा है:

हम गहरे अवलोकनके बाद अपना यह दृढ़ मत अंकित कर रहे हैं कि इन व्यापारियोंकी उपस्थितिसे सारे उपनिवेशको लाभ ही हुआ है; और यह कि, इनके विरुद्ध किसी प्रकारका कानून बनाना अगर अन्यायपूर्ण नहीं तो मूर्खतापूर्ण जरूर होगा ।

इन व्यापारियों और फेरीवालोंपर मुख्य आरोप यह लगाया गया है कि जीवनकी आवश्यक वस्तुओंकी कीमतें इन्होंने गिरा दी हैं और इससे छोटे यूरोपीय व्यापारियोंको बहुत नुकसान पहुँचाया है। अब, अगर मिलका "अधिकसे-अधिक लोगोंके अधिकसे-अधिक हित" वाला सिद्धान्त अब भी ठीक माना जा रहा हो तो लॉर्ड मिलनरके प्रति सम्पूर्ण आदर रखते हुए हम कहेंगे कि