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सम्पूर्ण गांधी-वाङमय

ये बेचारे तो प्रत्यक्ष वरदान-स्वरूप हैं। हम यह स्वीकार करनेके लिए तो कभी तैयार नहीं हो सकते कि इन भारतीय व्यापारियोंके कारण छोटे-छोटे यूरोपीय व्यापारियोंको नुकसान उठाना पड़ा है । फिर भी दलीलकी खातिर क्षण भर मान भी लें कि शायद सही हों तो क्या कीमतें गिर जानेसे उनसे कहीं अधिक बड़ी संख्याके खरीदनेवालोंको लाभ नहीं हुआ है ? क्या भारतीय व्यापारी गरीब यूरोपीय गृहस्थोंके लिए वरदान नहीं बन गये हैं ? गरीब यूरोपीय गृहस्थ, जैसा कि हम कह चुके हैं, उनसे निरन्तर सौदा लेकर मानो सिद्ध करते हैं कि भारतीय व्यापारियोंका यहाँ रहना उन्हें पसन्द है ।

परन्तु लॉर्ड महोदयने न केवल भारतीय व्यापारियोंके विरुद्ध अपना निर्णय दिया है, बल्कि अप्रत्यक्ष रूपसे प्रायः सुनाई पड़नेवाले इस वक्तव्यका भी समर्थन किया है कि “ट्रान्सवालमें भारतीयोंकी बाढ़ आ गई है।" हमारा खयाल तो यह था कि लॉर्ड मिलनरको अपने कानूनोंका ज्ञान सब लोगोंसे पहले होगा । शान्ति-रक्षा अध्यादेशके द्वारा शरणार्थियोंको छोड़ बाकी समस्त ब्रिटिश भारतीयोंके प्रवेशपर पूरी रोक लग गई है । और हम इन स्तम्भोंमें बता चुके हैं कि प्रामाणिक शरणार्थियोंको भी ट्रान्सवालमें प्रवेश मिलना कितना मुश्किल हो गया है । परन्तु चूंकि लॉर्ड मिलनरने यह वक्तव्य दिया है, हमें बड़ा भय है कि बाजार सूचनाकी भांति सारे दक्षिण आफ्रिकामें सब जगह इसपर अमल होने लगेगा और भारतीय व्यापारियोंको चारों तरफसे गालियाँ मिलने लगेंगी। इस संकटसे वे सही सलामत निकल आयें तो हमें बड़ा आश्चर्य होगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३०-७-१९०३

२९४. पत्र: उपनिवेश-सचिवको[१]

बॉक्स ५७
प्रिटोरिया
अगस्त १, १९०३

सेवामें

माननीय उपनिवेश-सचिव
प्रिटोरिया

श्रीमन्,

मुझे आपके गत मासकी २८ तारीखके पत्रकी प्राप्ति-स्वीकार करनेका सम्मान प्राप्त हुआ है । मैं देखता हूँ कि मुस्लिम जमातके न्यासीके रूपमें मस्जिदकी जायदादको उक्त पत्रमें लिखी शर्तोंके अनुसार, अपने नामपर लेकर आपको खुशी होगी ।

इस तजवीजके लिए मेरी समिति आपके प्रति कृतज्ञता प्रकट करती है, परन्तु खेद है कि वह इसे स्वीकार नहीं कर सकती, क्योंकि किसी धार्मिक जायदादका किसी गैर-मुस्लिमके नाम करना इस्लामके खिलाफ है ।

  1. यह १८-९-१९०३ के इंडियामें भी प्रकाशित हुआ था ।