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२९५. टिप्पणियाँ[१]

जोहानिसबर्ग
अगस्त ३, १९०३

ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थिति

ब्रिटिश भारतीयोंके खिलाफ बस्ती-कानूनके बारेमें जो मुकदमे चलाये गये थे उन्हें सरकारने वापस ले लेनेकी कृपा की है।

परन्तु क्लार्क्सडॉर्प नगरमें एक दूसरी कठिनाई उठ खड़ी हुई है । वहाँ मजिस्ट्रेटने ब्रिटिश भारतीय व्यापारियोंको सूचनाएँ दी हैं कि यदि उन्होंने इसी ७ तारीखतक उसके सामने इस बातके प्रमाण पेश न किये कि उनके पास युद्धसे पहले व्यापार करनेके परवाने थे तो, आशा है, उन्हें मजबूर किया जायेगा कि वे अपना व्यापार बस्तियोंमें हटा ले जायें। इससे वहाँके व्यापारी स्वभावतः डर गये हैं । वे नहीं जानते, उनकी स्थिति क्या है। यह कार्रवाई बहुत जल्दबाजीकी जान पड़ती है। क्योंकि श्री चेम्बरलेन और लॉर्ड मिलनर विचार कर रहे हैं कि वर्तमान कानून किस प्रकार बदला जाना चाहिए । यदि यह ठीक हो तो क्लार्क्सडॉपके ब्रिटिश भारतीयोंको सूचनाएँ देनेका कोई अर्थ नहीं हो सकता । निःसन्देह उनमें से सभी युद्धसे पहले वहाँ व्यापार नहीं करते थे और सबके पास उस समय क्रूगर्सडॉर्पमें व्यापार करनेका परवाना भी नहीं था; परन्तु वे सब सचमुच शरणार्थी हैं और युद्धसे पहले ट्रान्सवालके किसी-न-किसी भागमें व्यापार करते थे । व्यापार करने और व्यापारका परवाना रखनेके अन्तरको यहाँ समझ लेना आवश्यक है । स्मरण रखनेकी बात है कि युद्धसे पहले बहुतसे ब्रिटिश भारतीयोंको, परवाना न होते हुए भी, ब्रिटिश सरकारके संरक्षणके कारण, ट्रान्सवालमें बस्तियोंसे बाहर व्यापार करने दिया जाता था । इस कारण बहुत कम लोग यह दिखला सकेंगे कि उनके पास युद्धसे पहले व्यापारके परवाने थे । ट्रान्सवाल-सरकारने केवल, १८९९ में कुछ ब्रिटिश भारतीयोंको बस्तियों से बाहर व्यापार करनेके परवाने दिये थे ।

इसलिए यह मामला बहुत गम्भीर है, और इसपर शीघ्र ही विचार करके इसको हल कर दिया जाना चाहिए। लॉर्ड मिलनरको जो छपा प्रार्थनापत्र दिया गया है उसमें ये प्रश्न निश्चित रूपसे उठाये गये हैं । जब ब्रिटिश भारतीयोंके शिष्ट-मण्डलने यह शिकायत प्रिटोरियामें श्री चेम्बरलेनके सामने रखी थी तब उन्होंने जोर देकर कहा था कि ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयोंके पास इस समय जो परवाने हैं वे सब मान्य होंगे; इस बातका विचार नहीं किया जायेगा कि युद्धसे पहले वे जिन स्थानोंके लिए जारी हुए थे वहाँ वे व्यापार करते थे या नहीं। यह भी स्मरण रखना चाहिए कि युद्ध समाप्त होनेके तुरन्त पश्चात् ब्रिटिश अधिकारियोंने ब्रिटिश भारतीयोंको जो परवाने दिये थे उनमें यह शर्त बिलकुल नहीं लगाई गई थी कि वे अस्थायी हैं। अपने परवानोंके बलपर उन्होंने बड़ी-बड़ी दुकानें खोली हैं और अंग्रेज एजेंटोंकी मार्फत अधिकतर इंग्लैंडसे माल मँगाया है । अब यदि इन परवानोंके साथ कुछ भी छेड़छाड़ की गई तो ऐसे व्यापारी चौपट हो जायेंगे। जो अधिकार दिये जा चुके

  1. यह "हमारे संवाददाता द्वारा प्रेषित" रूपमें ४-९-१९०३ के इंडियामें छपा था ।