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हैं यदि उनको वास्तवमें स्वीकार करना है तो और सबसे पहले निम्नलिखित बातें नितान्त आवश्यक हैं:

पहली : सभी मौजूदा भारतीय परवानोंको बिना किसी प्रतिबन्धके नया कर देना चाहिए ।

दूसरी : वे एक स्थानसे दूसरे स्थानको बदले जाने लायक होने चाहिए ।

तीसरी : वे समस्त साधारण परवानोंकी भाँति, एक आदमीसे दूसरे आदमीके नाम बदले जाने लायक होने चाहिए।

कानून और जाब्तेका सब जगह एक-सा होना सचमुच बहुत आवश्यक है। इसके बिना ब्रिटिश भारतीयों को साँस लेनेतक का समय नहीं मिल सकता। इस समय स्थिति इतनी अनिश्चित और जटिल है कि प्रत्येक मजिस्ट्रेट अपना अलग रास्ता बनाता है। इससे बड़ी गड़बड़ी होती है।

ब्रिटिश भारतीय संघने बहुत प्रयत्न किया और विश्वास दिलाया कि जो सचमुच शरणार्थी हैं वे अपने खर्चसे छूतकी अवधितक अलग रहकर ट्रान्सवाल लौट जानेको तैयार हैं। इतनेपर भी नेटालमें ब्रिटिश भारतीय शरणार्थियोंपर प्लेगके कारण जो रोक लगाई गई थी वह, अबतक जारी है।

जो शरणार्थी नहीं हैं, उन्हें तो ट्रान्सवाल जाने ही नहीं दिया जा रहा है --- वे चाहे केपसे आये हों चाहे डेलागोआ-बेसे । ब्रिटिश भारतीय शरणार्थियोंको भी प्रति सप्ताह केवल अनुमति पत्र (परमिट) दिये जा रहे हैं ।

लॉर्ड मिलनरने श्री चेम्बरलेनको तारसे जो खरीता भेजा था उसमें निम्नलिखित अंश आया है :

आज हम बड़ी भोंडी स्थितिमें पड़ गये हैं । उपनिवेशमें छोटी हैसियतवाले भारतीय व्यापारियों और फेरीवालोंकी बाढ़ आ गई है। इनसे समाजको कोई लाभ नहीं है। और जिन भारतीय मजदूरोंकी हमें बहुत जरूरत है उन्हें हम ला नहीं पा रहे हैं।

ऊपर जो कुछ कहा गया है उसको देखते हुए हम परमश्रेष्ठसे अत्यन्त आदरके साथ कहना चाहते हैं कि उक्त खरीतेमें "छोटे भारतीय व्यापारियों और फेरीवालोंकी बाढ़ आ गई है" -- यह कथन सर्वथा भ्रामक है। जब सब शरणार्थियों को भी नहीं लौटने दिया जा रहा है तब बाढ़ तो आ ही नहीं सकती । शान्ति-रक्षा अध्यादेश जारी होनेके बाद मची गड़बड़ीमें जो थोड़े-से लोग बिना अनुमति-पत्रोंके आ गये थे उनको भी ट्रान्सवालसे बाहर खदेड़ दिया गया है ।

यह कथन कि “छोटे-छोटे भारतीय व्यापारियों और फेरीवालोंसे जनताका कुछ फायदा नहीं" है, तथ्योंके विपरीत है, इसे नेटाल-आयोगने निश्चित रूपसे प्रमाणित कर दिया है; यह इससे भी प्रकट है कि प्रायः सभी व्यापारी और फेरीवाले यूरोपीयों द्वारा पालन-पोषणपर निर्भर करते हैं। हजारों फेरीवाले, देशमें दूर-दूर बिखरे हुए परिवारोंके दर-दर जाकर, प्रतिदिन उन्हें सस्ते दामोंपर सब्जी पहुँचाते हैं, और छोटे भारतीय व्यापारी, बड़े यूरोपीय व्यापारियों और उनके गरीब यूरोपीय तथा जूलू ग्राहकोंमें बिचवैयोंका काम करते हैं। इसके अतिरिक्त उनका अधिकतर मुनाफा भी उन थोक यूरोपीय पेढ़ियों और बैंकोंकी ही थैलियों में जाता है, क्योंकि वे यूरोपीय पूंजी तथा यूरोपीय जमींदारों द्वारा ही संचालित होते हैं । हालमें आये हुए तारोंसे पता लगता है कि लॉर्ड मिलनरने श्री चेम्बरलेनको वर्तमान कानूनके विषयमें जो खरीता भेजा था वह इंग्लैंडके समाचारपत्रोंमें छपा है। मालूम होता है,