पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/४६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२०
सम्पूर्ण गांधी वाङमय

परमश्रेष्ठने लिखा है कि "अनिवार्य पृथक्करण स्वच्छताके तथा नैतिक आधारपर आवश्यक है ।" परमश्रेष्ठका यह आक्षेप भारतीय समाजको बहुत बुरा लगा है। इसका खण्डन निःस्वार्थ, निरपेक्ष और असन्दिग्ध साक्षियों द्वारा अनेक बार किया जा चुका है। "नैतिक आधार" शब्दोंका प्रयोग शायद इस सम्बन्धमें किसी ब्रिटिश प्रतिनिधि द्वारा प्रथम बार ही किया गया है । जब ऑरेंज फ्री स्टेटकी भूतपूर्व विधानसभाको दिये गये एक प्रार्थनापत्रमें इसी प्रकारकी शब्दावलीका प्रयोग किया गया था तब ब्रिटिश अधिकारी उससे अप्रसन्न हुए थे । ब्रिटिश भारतीयोंके तीव्रतम विरोधियोंने भी वर्तमान विवादमें कहीं भी ऐसा आक्षेप नहीं किया है। हमारी समझमें नहीं आता कि परमश्रेष्ठने किस सबूत के आधारपर ऐसा आक्षेप करनेकी कृपा की है।

"स्वच्छताके आधार" के विषयमें इतना बतला देना पर्याप्त होगा कि हालमें ही जोहानिसबर्गमें एक अस्वच्छ क्षेत्र आयोग बैठा था। उसके सामने जोहानिसबर्गके स्वास्थ्य-अधिकारीने एक काल्पनिक और खूब रंग चढ़ाकर तैयार किया हुआ प्रतिवेदन पेश किया था । उसका जवाब दो चिकित्सक सज्जनोंने दिया था और स्वास्थ्य अधिकारीकी एक-एक बातको काट फेंका था। इन दोनोंमें एक (डॉ० जॉन्स्टन) प्रसिद्ध स्वच्छता-विशेषज्ञ हैं । जो भी हो, यह मामला भारतीयोंको अनिवार्य रूपसे पृथक् बसानेका तो इतना है नहीं, जितना कि स्वास्थ्यके नियमोंको लागू करनेका है। यह भी स्मरण रखना चाहिए कि जबरदस्तीमें जो डंक है उसपर हमें आपत्ति है । स्वेच्छासे जाना हो तो भारतीयोंका सबसे गरीब तबका उस बस्तीमें जाकर जरूर रहने लगेगा जो सरकार उनके लिए निर्धारित कर देगी। किसी प्रकारकी जबरदस्ती न किये जानेपर भी दक्षिण आफ्रिका भरमें गत बारह वर्षका अनुभव सर्वत्र यही रहा है ।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडिया ऑफ़िस : ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, ४०२ ।

२९६. तार : ब्रिटिश समितिको[१]

जोहानिसबर्ग

अगस्त ४, १९०३

जब कि यूरोपीयोंको ट्रान्सवाल-प्रवेशके परवाने प्राप्त,सैकड़ों भारतीय शरणार्थियोंको प्रति सप्ताह सत्तरसे अधिक नहीं । पढ़े-लिखे अशरणार्थी भारतीयोंका भी प्रवेश एकदम निषिद्ध है। इसलिए अनेक भारतीय तटपर परेशान । नेटालसे यूरोपीय और काफिर स्वच्छन्द ट्रान्सवाल आ सकते हैं परन्तु भारतीय एकदम नहीं। बहाना प्लेग । यद्यपि वह डर्बनतक ही महदूद और वहाँ भी अब लगभग खत्म । भारतीय अपने खर्चपर सूतकमें रहने को तैयार । वर्तमान कानून श्री चेम्बरलेनके विचाराधीन फिर भी सरकार द्वारा उन्नीस मजिस्ट्रेट बस्तियाँ रूप-रेखांकित । क्लार्क्सडॉर्पने नोटिस दिया है, जो सात तारीखके पहले युद्धपूर्व व्यापार-परवानादारी सिद्ध करनेमें असमर्थ, उन्हें अवश्य बस्तियोंमें जाना होगा । वर्षके

  1. यह तार सम्पादित रूपमें ७-८-१९०३के इंडियामें जोहानिसबर्ग संवाददातासे प्राप्त रूपमें और २६-८-१९०३के टाइम्स ऑफ़ इंडिया में “एक ब्रिटिश भारतीय" के नामसे प्रकाशित हुआ था ।