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पाँचेफ़स्ट्रूमके भारतीय

भूलसे "करो" के बाद एक छोटा सा शब्द "नहीं" छोड़ दिया ? देखें इस प्रार्थना-पत्रपर साम्राज्यनिष्ठ श्री चेम्बरलेन क्या करते हैं ? {{[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ६-८-१९०३}}

३००. पाँचेफ़स्ट्रूमके भारतीय

पॉचेफ़स्ट्रमकी बस्तियोंके बारेमें वहाँ हालमें जो मुकदमे चलाये गये हैं उनको लेकर वहाँके भारतीयोंने एक बड़ी सफल सभा की। इसपर उन्हें हमारी बधाई है। उनके प्रस्तावके औचित्यसे कौन इनकार कर सकता है ? उसमें कहा गया है कि इस विषयमें जबतक सम्राट्-सरकार अपने विचार प्रकट नहीं कर देती तबतक ट्रान्सवालकी सरकारको कोई कार्यवाही नहीं करनी चाहिए। ऐसी प्रार्थनापर सम्भवतः किसीको आपत्ति नहीं हो सकती। श्री चेम्बरलेनने लोकसभामें अपने प्रश्नकर्ताओंको अनेक बार आश्वासन दिया है कि वे इस प्रश्नपर पूरी तरहसे सावधानीके साथ विचार करेंगे और इस विषयमें क्या करना है, इसकी सलाह लॉर्ड मिलनरको देंगे। इससे साफ जाहिर है कि इसका हल पूरी तरहसे ट्रान्सवालके गोरे उपनिवेशियोंके हाथोंमें नहीं है। इसलिए अगर इस विषयमें साम्राज्य सरकारकी भी बात सुनी जानेको है तो समझमें नहीं आता कि ट्रान्सवालकी सरकार क्यों इतनी जल्दी कर रही है और न्यायको ताकमें रखकर मनमाने तौरपर भारतीयोंको बस्तियोंमें भेज रही है ? हम श्री अब्दुल रहमान[१]के भाषणके नीचे लिखे अंशकी तरफ अधिकारियोंका ध्यान दिलाना चाहते हैं:

मुझे यह भी कहते हुए दुःख होता है कि स्थानीय पुलिस अब भी बड़े सवेरे आकर हमें सताती है और केवल परवाने बदलवानेके लिए मुलजिमोंकी तरह हमें घेरकर थानेपर ले जाती है। मैं समझता हूँ कि हमें उच्च अधिकारियोंसे इसकी शिकायत करनी चाहिए। मुझे विश्वास है कि वे हमारी जरूर सुनवाई करेंगे ।

सब सम्बन्धित पक्षोंके प्रति सरकारका कर्तव्य है कि इन अभियोगोंकी पूरी-पूरी जाँच करे, क्योंकि अगर उपर्युक्त कथन सत्य है तो यह सब कार्यवाही असह्य रूपसे जालिमाना है ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ६-८-१९०३
  1. स्ट्रिम भारतीय संघके मन्त्री ।