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विनयसे विजय

बस्ती या बस्तियाँ कायम कर सकती है। ऐसी तमाम बस्तियोंके समुचित नियन्त्रणके लिए परिषदको विनियम बनानेका अधिकार भी होगा ।

११९. परिषदको अधिकार होगा कि मालिकोंको मुआवजा देकर इन बस्तियोंमें खड़े झोंपड़ों, निवासों या अन्य इमारतोंको गिरा दे या हटवा दे। मुआवजेकी रकम क्या हो इसका निर्णय नगरपालिकाके मूल्यांकनकर्ता करेंगे, जिसपर परिषदकी मंजूरी आवश्यक होगी।

१२०. नगरपालिकाकी सीमामें रहनेवाले वतनियोंके नियन्त्रणके सम्बन्धमें धारा १२४ और १२५ के अनुसार नियम बनाने, उनमें संशोधन करने अथवा उन्हें एकदम रद करनेका और नीचे लिखे सब या अलग-अलग विषयोंका भी परिषदको अधिकार दिया जाता है :

(क) दैनिक या माहवारी आधारपर या किसी अधिक समय तकके लिए नियुक्त या नगरपालिका क्षेत्रके अन्दर काम ढूँढनेवाले वतनी लोगोंका समुचित पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) करना ।

(ख) मालिक और नौकर अपने बीच हुए इकरारनामोंको पंजीकृत कराना चाहें तो उनका पंजीकरण करना ।

(ग) आवारागर्दी, दंगा-फसाद या अशिष्ट बरतावपर नियन्त्रण रखना ।

पाठक गौर करेंगे कि उपर्युक्त धाराओंमें प्रयुक्त 'वतनी' और 'रंगदार मनुष्य' शब्द पर्यायवाची हैं और एक ही वस्तुके बोधक हैं। और इन्हें मामूली अपराधियों अथवा जानवरोंकी तरह निगमकी इच्छानुसार कहीं भी हटाया जा सकता है । उपनिवेशके ब्रिटिश विधि- निर्माताओंको यह नहीं जान पड़ा कि इसमें अत्यधिक अब्रिटिशपन है। इसपर टिप्पणी व्यर्थ है ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ६-८-१९०३

३०३. विनयसे विजय

महामहिम सम्राट् और सम्राज्ञीकी आयलैंड-यात्रा केवल आयलँडवासियोंके लिए ही नहीं, समस्त साम्राज्यके लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । यह सम्राट्के नम्रसे-नम्र प्रजाजनके लिए विनम्रताका वह पदार्थ-पाठ पढ़ाती है जो गिरजा-पीठसे दिये गये अधिकसे-अधिक रोमांचक प्रवचनोंमें भी नहीं मिल सकता । डब्लिनके नगर-निगम (कारपोरेशन) ने, हम कहेंगे, अपनी क्षुद्रता-वश, सम्राट् और सम्राज्ञीको उनकी आयलँडकी इस यात्रापर मानपत्र देनेसे इनकार कर देना उचित समझा, मानो आयलँडके कष्टोंके लिए वे ही जिम्मेदार हों। लेकिन इस वृत्तिका जवाब सम्राट्ने किस प्रकार दिया ? जब देशकी राजधानीका नगर उनका स्वागत करनेको तैयार नहीं था, सम्राट् अपनी आयलँडकी यात्राको ही रद कर सकते थे । अथवा, वहाँ पहुँचनेपर निगमकी कार्यवाहीपर बामानी तौरसे अपनी अप्रसन्नता प्रकट कर सकते थे । परन्तु उन्होंने अन्य प्रकारसे सोचनेकी कृपा की। और उन्होंने वास्तवमें अपने सहानुभूति भरे शब्दों और खुले दिलसे व्यवहार द्वारा सारे विरोधको निरस्त्र कर दिया और बुराईका जवाब भलाई द्वारा देकर निगमको यहाँतक लज्जित कर दिया कि, कहा जाता है, उसे अपने निर्णय पर