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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पश्चात्ताप हुआ | समाचारोंमें हमने और भी पढ़ा है कि सम्राट् डब्लिनकी दरिद्र-बस्तियोंमें पैदल घूमे, गरीबोंके घरोंमें गये और उनसे सहानुभूतिसे बातचीत की। महामहिम-द्वय कोरे शब्द या सहानुभूतिके भाव व्यक्त करके ही नहीं रह गये। उन्होंने उन भावोंको एक हजार पौंडका दान करके चरितार्थ भी किया। हम अपने दिलोंमें कह सकते हैं कि इसमें उन्होंने कौन बड़ा त्याग कर दिया ? सम्राटोंके लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है। परन्तु दुनिया जानती है कि संसारके समस्त प्रथम श्रेणीके नरेशोंमें इंग्लैंड के बादशाह सबसे अधिक गरीब हैं । फिर हम यदि यह भी गौर करें कि बादशाहोंके कोशपर हजारों गरजमन्दोंकी पुकार लगी रहती है तो हमें मानना होगा कि सम्राट् और सम्राज्ञीने अपनी आयलँडकी यात्रामें जो दान दिया वह कोई नगण्य कार्य नहीं कहा जा सकता । स्वर्गीय सम्राज्ञी अपने पीछे ऐसी सुकीर्ति छोड़ गई हैं कि उसे आसानीसे भुलाया नहीं जा सकता। परन्तु अगर उस सुकीर्तिसे आगे बढ़ जाना अथवा उसकी बराबरी करना किसी प्रकार सम्भव हो तो जान पड़ता है कि हमारे वर्तमान सम्राट् और सम्राज्ञी ऐसा करनेके बहुत-कुछ योग्य हैं। महारानी विक्टोरियाके दीर्घ शासन कालमें ब्रिटिश संविधान पूर्ण रूपसे सुव्यवस्थित हो चुका है। अतः अब उसमें काट-छाँट होनेकी रत्तीभर भी आशंका नहीं है। इसलिए सम्राट्के प्रजाजन जब देखते हैं कि सम्राट् अपनी मर्यादाओंके अन्दर रहते हुए उनकी भलाई और सेवा करनेमें कुछ उठा नहीं रखते तो प्रजाजनों को बड़ा सन्तोष होता है । परन्तु हमने ऊपर जो कुछ कहा है उसके अलावा, इस घटनाका भारतके लिए खास महत्त्व है। पाठकोंको स्मरण होगा कि सम्राट् जब युवराज (प्रिंस ऑफ वेल्स) थे, वे भारत पधारे थे। तब अपनी उदारतासे उन्होंने उस छोटी-सी यात्रामें भी भारतवासियोंके दिलोंको जीत लिया था। जाहिर है कि उसके बाद अपने स्वभावकी इस खूबीको उन्होंने बहुत अधिक विकसित किया है। अतः क्या हमें यह आशा करनेका कारण नहीं है कि, जब कभी मौका आयेगा, अपनी पुण्यश्लोका माताकी भाँति अपने भारतीय प्रजाजनोंकी, भले ही वे उनसे हजारों मील दूर हैं, सिफारिश करनेमें वे चूकेंगे नहीं ?

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ६-८-१९०३

३०४. विभ्रम

जब हम देखते हैं कि लॉर्ड मिलनर निचले दर्जेकी रुचिको तुष्ट करना चाहते हैं, और वह भी सरकारी कागजोंमें, तब हमें दुःख होता है। भारतीय प्रश्नपर श्री चेम्बरलेनके नाम भेजे गये परमश्रेष्ठके खरीतोंसे साफ जाहिर होता है कि राजनयिक लॉर्ड मिलनरने पालमालके सम्पादक श्री मिलनरको छोड़ नहीं दिया है। परमश्रेष्ठने अपने दो खरीतोंमें, जो हालमें ही समाचारपत्रोंमें छपे हैं, निम्नलिखित तीन वक्तव्य दिये हैं। उनके प्रति समुचित आदरका भाव रखते हुए हम यह कहनेके लिए विवश हैं कि ये तीनों बेबुनियाद हैं । वे लिखते हैं : (१) भारतीय व्यापारी और फेरीवाले ट्रान्सवालके लिए निरुपयोगी हैं। (२) भारतीय सारे देशपर छाये जा रहे हैं । (३) स्वच्छताकी और नैतिक दृष्टिसे भारतीयोंको पृथक् बसाना आवश्यक है। पहले दो मुद्दोंपर हम विचार कर चुके हैं । सरसरी तौरपर हम उपनिवेश-सचिवके वक्तव्यकी ओर ध्यान दिला देना चाहते हैं कि ट्रान्सवालमें केवल १०,००० भारतीय हैं । अर्थात् लड़ाईके पहले जितने थे उनसे आधे भी नहीं। और हफ्तेमें जहाँ यूरोपीयोंको सैकड़ों