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विभ्रम

परवाने दिये जाते हैं वहाँ भारतीयोंको केवल सत्तर दिये जाते हैं। इसके अलावा, उन बहुतसे भारतीयोंको बाहर खदेड़ दिया गया है, जो भूलसे बगैर परवानोंके उपनिवेशमें चले आये थे । स्वच्छताकी और नैतिक दृष्टिसे भारतीयोंको पृथक् बसाना जरूरी है ! ऐसा लगता है मानो इसमें हम लड़ाईके पहले ऑरेंज फी स्टेटके राष्ट्रपतिके नाम स्वार्थी व्यापारियोंकी भेजी दरखास्तें पढ़ रहे हैं, जिनके अन्दर हर तरहकी अनैतिकताके आरोप ब्रिटिश भारतीयोंपर लगाये गये थे। उस समय ब्रिटिश सरकारके प्रतिनिधि उनसे हमारी रक्षा करते थे । उनको फिरसे जिन्दा करना और उनपर अपने ऊँचे पदकी मुहर लगाना यह काम लॉर्ड मिलनरके लिए बाकी था। परन्तु इसके समर्थनमें कोई प्रमाण प्रस्तुत करनेकी कृपा श्रीमान नहीं कर सके हैं । शान्त, शराबसे परहेज करनेवाला और परमात्मासे डरनेवाला परिश्रमी भारतीय जिस समाजके सम्पर्कमें आता है उसे नैतिक हानि पहुँचा सकता है, यह कल्पना 'नवल' है। ऐसा आरोप भूतपूर्वं ट्रान्सवाल-सरकारने भी उसपर नहीं लगाया था । परमश्रेष्ठसे हम आदरपूर्वक निवेदन करते हैं कि सम्राट्के निर्दोष भारतीय प्रजाजनोंके प्रति न्याय करनेकी खातिर या तो वे अपने कथनको वापिस लें या तथ्योंको सामने लाकर उसे सिद्ध करें। गन्दगीके पिटे-पिटाये इलजामके बारेमें हम परमश्रेष्ठका ध्यान उन ढेरों सबूतोंकी ओर आकृष्ट करना चाहते हैं, जिन्हें सन् १८९६ में ब्रिटिश भारतीयोंने पेश किया था। आरोपका जितना भी अंश सत्य है वह गम्भीर नहीं है । क्योंकि, उसका मुख्य कारण भारतीयोंके प्रति अधिकारियोंकी लापरवाही है । जिस अंशको गम्भीर कहा जा सकता है वह निष्पक्ष यूरोपीयोंकी दृष्टिमें सत्य नहीं है । उदाहरणार्थ, डाक्टर वील कहते हैं :

मैंने उनके शरीरोंको आम तौरसे स्वच्छ और लोगोंको गन्दगी तथा लापरवाहीसे उत्पन्न होनेवाले रोगोंसे मुक्त पाया है। उनके मकान साधारणतः साफ रहते हैं और सफाईका काम वे राजी-खुशीसे करते हैं। वर्गको दृष्टिसे विचार किया जाये तो मेरा यह मत है कि निम्नतम वर्गके भारतीय निम्नतम वर्गके यूरोपीयोंकी तुलनामें बहुत अच्छे उतरते हैं । अर्थात्, निम्नतम वर्गके भारतीय निम्नतम वर्गके यूरोपीयोंकी अपेक्षा ज्यादा अच्छे ढंगसे, ज्यादा अच्छे मकानोंमें और सफाईकी अवस्थाका ज्यादा खयाल करके रहते हैं। मेरे खयालसे, आम तौरपर भारतीयोंके विरुद्ध सफाईके आधारपर आपत्ति करना असम्भव है। शर्त हमेशा यह है कि, सफाई-अधिकारियोंका निरीक्षण भारतीयोंके यहाँ उतना ही सख्त और नियमित हो, जितना कि यूरोपीयोंके यहाँ होता है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ६-८-१९०३