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३०५. सही विचार आवश्यक

बॉक्सवर्गके सज्जन एशियाई प्रश्नमें बराबर दिलचस्पी ले रहे हैं। परन्तु यह बड़े तरसकी बात है कि अपनी इस सरगरमीमें वे सही जानकारीका पुट देनेकी परवाह नहीं करते । इसमें गरीब एशियाइयोंके साथ तो अन्याय करते ही हैं, परन्तु अपने साथ भी न्याय नहीं करते। उनके प्रस्तावोंमें वह वजन नहीं हो सकता जो उस दशामें होता जब वे सत्यपर आधारित होते । फिर, गलत धारणाओंके आधारपर दिये गये फैसले न चाहते हुए भी उनके प्रति अन्याय करते हैं, जिनपर वे लागू होते हैं। हम देखते हैं कि अध्यक्ष श्री अलेक्जैंडर ऑसबर्नने उनकी एक सभामें इस प्रस्तावके समर्थनमें भाषण दिया जिसमें, कहा जाता है, उन्होंने निम्नलिखित बात कही: 'अगर एशियाइयोंके बारेमें हालमें ही जारी किये गये अध्यादेशपर अमल किया गया तो उसका परिणाम उपनिवेशोंके यूरोपीय व्यापारियोंके हितोंका निश्चय ही अत्यन्त घातक होगा। इसलिए हम सरकारसे अनुरोध करते हैं कि इस अध्यादेशके बदले ट्रान्सवालकी भूतपूर्व सरकारने जो कानून जारी किया था उसीका वह सख्तीके साथ पालन करे । उससे परिस्थिति काबूमें आ जायेगी ।". . . "बॉक्सबर्ग संघ ( चेम्बर) अपने न्याय-सम्बन्धी फैसलों और व्यापारी समुदायकी शिकायतोंको इतनी अच्छी तरह और प्रमुख रूपसे सामने लानेके अपने ढंगके कारण उपनिवेशके लिए गौरवकी वस्तु है ।” बॉक्सबर्ग संघके "न्याय सम्बन्धी फैसलों" के प्रति उचित आदर प्रकट करते हुए हम उसके सदस्योंको याद दिलानेकी इजाजत चाहते हैं कि जिसे वे नया "अध्यादेश" बताते हैं वह ट्रान्सवालकी भूतपूर्व सरकारके कानूनपर अमल करनेके सरकारी निश्चयकी सूचनामात्र है। सरकार इस कानूनको सख्तीसे लागू करना चाहती है यह हम अनेक बार बता चुके हैं। इसलिए हम आशा करते हैं कि जो सज्जन यह संघ बनाये हुए हैं, वे भूतपूर्व गणराज्यके कानून और वर्तमान सरकारकी सूचनाको पढ़ जायेंगे, दोनोंकी तुलना करेंगे और स्वयं समझनेकी कृपा करेंगे कि बोअर शासन कालमें इस कानूनका पालन किस प्रकार होता था । और फिर स्वयं ही इस प्रश्नका जवाब अपने आपको देंगे कि पुराने कानूनका ही पालन सख्तीके साथ किया जा रहा है या नहीं ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ६-८-१९०३